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Showing posts from August, 2021

नाग देवता

सृष्टिकर्ता की हताशा के अश्रुकण से उद्भूत, मानव मूलाधार चक्राकृति, सहस्त्रसार चक्र सम फण, सूर्य द्वारा घोषित पञ्चमी अधिकारी, विष्णु शैय्या सेवा प्रदाता (शेषनाग), शिव के कण्ठहार, फण पर महिभार धारक, रुद्र,गणेश व कालभैरव के यज्ञोपवीत, सृष्टि संचालन में ग्रह भूमिका (अष्टनाग), पितृ दोष निवारक, कुलोन्नति माध्यम, नागदेवता! शिरश: नमामि! मनोज श्रीवास्तव

महादेव

 (१) वे भयंकर रौद्ररूप हैं तो भोलेनाथ भी। वे दुष्ट संहारक कालरूप हैं तो दीनों के दया सिंधु भी। वे सृष्टि रचयिता हैं तो संहारक भी। वे आदि हैं तो अनन्त भी। वे भक्तों को सुखानन्द प्रदाता हैं तो स्वयं विरक्त भी। लय व प्रलय दोनों के स्वामी शिव परस्पर विरोधी शक्तियों के मध्य सामञ्जस्य निर्माण के सुन्दरतम प्रतीक  सम्पूर्ण देव हैं। ऐसे महादेव की शरण अभयास्थल है। (२) ज्ञान वैराग्य व साधुता के परमादर्श परम कल्याणमय समस्त विधाओं के मूलस्थान सङ्गीत व नृत्य के आचार्य मङ्गलों के मूल आदि-अंत से परे अनन्त रक्षक-पालक-नियन्ता महेश्वर देवी-देवताओं में सम्पूर्णता के प्रतीक महादेव! मनोज श्रीवास्तव

लघु कथा : माँ अच्छी-माँ बुरी

  लघुकथा : माँ अच्छी-माँ बुरी ! वय 15 की अल्हड़ किशोरी! विकसित शरीर के प्रति बेपरवाह! क्योंकि बुद्धि का विकास अभी बालोन्मुख! आसपास की चीजों का अवलोकन करती माँ के साथ बाजार में जा रही थी। तभी रास्ते में दो मनचले पीछे हो लिए।पर माँ को तो दीन-दुनिया का अनुभव था।उसने बिना पीछे देखे परिस्थिति समझ ली।एकाएक पलटी।माँ की खा जाने वाली निगाहें देख शोहदों ने कन्नी काट जाने में ही भलाई समझी।किशोरी चैतन्य हुई।उसे वर्तमान का बोध हो आया।परिस्थिति को समझ माँ के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर बैठी-"माँ तुम कितनी अच्छी हो!" ************** किशोरी के सहपाठी का जन्मदिन!रात में पार्टी!माँ ने समझाया-बेटा!एक तो दूरी दूसरा पापा के दो-तीन के लिए बाहर होने से वह सूर्यास्त के बाद उसे बाहर जाने नहीं दे सकती।वह फोन पर ही विश कर ले।ऊँच-नीच समझाने का प्रयास किया पर बेटी जिद पर थी...दोस्तों के साथ मस्ती जो करनी थी।अंततः माँ ने वीटो- पॉवर इस्तेमाल किया-रागिनी!तुम्हें कहीं नहीं जाना।तुम्हें मेरे पास ही रहना है जब तक पापा नहीं आ जाते!बेटी नाराज़ होकर पैर पटकती कमरे में चली गयी।गुस्से में बड़बड़ाई-"माँ तुम कितनी बुरी

लघुकथा : पूर्वाग्रह

                     लघुकथा : पूर्वाग्रह "आज शाम घर पर कोई ना होगा लक्ष्मी!" हाय दैया! कितनी बेशर्मी के साथ बोल गया था वह! पर मेरे मन में हूक सी दौड़ गई।इस घर में काम करते हुए मुझे साल भर होने को आए हैं।मैं जब घर में घुसती हूँ तो वह कभी आगे के कमरे में ही बैठा होता है तो कभी लॉबी में।मुझे देख कर  मुस्कुरा भर देता है बस!शायद बीवी से डरता है।इसलिए मुझे कभी-कभी डरता कनखियों से देखता भर लगता है।उसकी मुस्कान से मुझे कभी तो लगता है कि वह मुझे पसंद करता है,पर कभी तो लगता है कि मैं मुगालते में हूँ।बड़े घरों की तो यही रीति है कि बीवी की डाँट और खिच-खिच से आजिज मर्द पराई औरतों को,विशेषकर हम कामवालियों को ललचाई नजरों से देखते हैं और बात करने का मौका तलाशते हैं।पर इस नासपीटे की बीवी से तकरार भी नहीं सुनी है।दोनों कबूतर-कबूतरी की तरह गुटर-गूँ करते रहते हैं।उनके इस प्यार व कलह रहित वातावरण के कारण ही तो मैं आज तक समझ ही नहीं पाई कि उसकी नजर व मुस्कान वासना से भरी, ललचाई हुई है या और कुछ!  पर आज उसके शब्दों ने करंट छुआ दिया।हम औरतों की यह धारणा फिर से सिद्ध हो गई कि ये सारे मर्द जात एक से क