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Showing posts from March, 2024

प्रेम और विश्वास का पर्व होली

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  प्रेम और विश्वास का पर्व होली         @मानव वसंत पँचमी से उठते फागुन का उत्कर्ष है होली पर्व; जो आने से पहले ही चारों ओर आशा और प्रेम का सँचार कर जाता है और बूढ़ा भी बालक बन जाता है, तभी तो उम्र के बन्धन तोड़कर रँगने-रङ्ग जाने का उत्सव है होली। लोगों के हृदय में विराजमान  श्रीराम आराध्य भी हैं, इष्ट भी और लोकनायक भी; श्रीराम के जीवन चरित्र का  लोक मानस पर ऐसा अमिट प्रभाव है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भी  फागुन के गीतों में रङ्ग खेलते हैं तो कभी झूमकर नृत्य करते दिखते हैं। कान्हा की होली तो यहाँ के लोकनृत्य,नाटक,  गीत-संगीत और चित्रकला में भावपूर्ण रूप में उपस्थित हैं,  तभी तो ब्रज की होरी  कवियों की कल्पना को  असीमित विस्तार देती आई है। होली लोक का सबसे बड़ा  सामाजिक पर्व है, जिसमें कलाओं के रंग भी हैं,  प्रेम,स्नेह और सम्मान के  गुलाल-अबीर भी; होली के इस चतुर्दिक उल्लास में 'यो अहम् सो असौ यो असौ सोहम्' का सनातन भाव साकार हो उठता है। (जो मैं हूं,वह वो है और जो वो है वह मैं हूँ।) हमने एक-दूसरे को रंग दिया है; उसके रंग में मैं भीगा हूँ और मेरे रंग में वह; जिसमें न मनमुटाव की चिंता

शिव चेतना का जागरण

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महाशिवरात्रि पर   शिव चेतना का जागरण         @मानव शिव गहन मौन और स्थिरता के आकाश हैं,  जहाँ पर मन की सभी गतिविधियाँ घुल जाती है; यही आकाश, हमें दिव्यता देता है, जिस क्षण हम केंद्र में स्थित होते हैं, दिव्यता को हर क्षण, हर स्थान पर देखते हैं; ध्यान में ऐसा ही होता है। जिसका कोई आदि और अंत ना हो, उन्हीं भगवान शिव का एक नाम अद्यंतहीन है, शिव व्यक्ति नहीं चेतना हैं।  शिव वह हैं, जिसमें से हर एक का जन्म होता है, जो इस क्षण को चला रहे हैं, जिसमें हर रचना विलीन हो जाएगी; वे समस्त रचनाओं में समाए हैं; जन्म-मृत्यु से परे वे शाश्वत हैं। जिसका कोई आकार ना हो,  लेकिन वह सब देखता हो; इन्हीं शिव को विरुपाक्ष भी कहा जाता है। दिव्यता हमारे चारों ओर है  और हमें देख रही है; यह हमारे अस्तित्व का  निराकार भाग है, यह निराकार दिव्यता ही शिव है।  शिव सर्वगत होते हुए भी  प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर नहीं होते।  अतः जो जीव गर्भ,जन्म,वृद्धावस्था से युक्त हैं, वे भला उनके अपरिमित गुणों को किस प्रकार बता सकते हैं?    ( महाभारत ) शिव अद्वैत चेतना हैं, जो सब जगह हैं; इसलिए पूजन से पहले स्वयं को शिव में विलीन करना होता है

आदि योगी

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 आदि योगी          @मानव १ कल्याणकारी पाप नाशक मुक्तिदाता शिव ।  २ मंगलकारी  हितैषी समस्त व सर्वदा  सदाशिव । ३ आध्यात्मिक  ज्ञान,गुण व शक्ति  विधायन  शिवत्व। ४  मन बुद्धि सह शिव स्मृति  कर्म में प्रवृत्ति योग। मनोज श्रीवास्तव २१/०२/२०२०,शिवरात्रि