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पितृ-तर्पण व श्राद्ध के निहितार्थ

 पितृ-तर्पण व श्राद्ध के निहितार्थ  दुनिया में हमारे अस्तित्व का कारण हमारे पूर्वज हैं।भारतीय ऋषियों की श्राद्ध- व्यवस्था उनकी अपूर्व दूरदर्शिता का अनूठा उदाहरण है।सारे संसार में पूर्वजों की पुण्य स्मृति को सुरक्षित रखने की ऐसी सटीक परंपरा मिलना दुर्लभ है। ध्यान रखें, पितृ तर्पण व श्राद्ध विधि सहित किसी भी आर्ष ग्रन्थ में कहीं भी जीवित माता-पिता व बुजुर्गों का तिरस्कार करने की वकालत नहीं की गई है।हमारी संस्कृति कहती है अभिवादनशीलस्य  नित्यं वृद्धोपसेविनः।  चत्वारि तस्य वर्धन्ते  आयुर्विद्या यशो बलम्।। ( जो व्यक्ति सुशील और विनम्र  होते हैं, बड़ों का अभिवादन व सम्मान करने वाले होते हैं तथा अपने बुजुर्गों की सेवा करने वाले होते हैं। उनकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल इन चारों में वृद्धि होती है।)  ऐसे में "असल श्राद्ध व तर्पण जीवित रहते" जैसे प्रश्न खड़े कर हम अपने अपराधों को छिपा कर अपनी ओछी सोच का प्रमाण देते हैं। शास्त्रों में मनुष्य को तीन ऋण (देव,ऋषि व पितृ) से मुक्ति पाना आवश्यक माना गया है।श्राद्ध पितृ ऋण से मुक्ति का साधन बताया गया है।मान्यता है कि हमारे पूर्वज श्राद्ध दिवसो