राम : सँविधान की चेतना
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प्रजासत्ताक दिवस पर राम : सँविधान की चेतना @मानव सँविधान राजनीतिक सुशासन के सपनों का पथ प्रदर्शक है और विधायी मर्यादा का रक्षक भी; मर्यादा पुरुषोत्तम का प्रभाव जिसमें सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। सँविधान की मूल प्रति पर लँका विजय के बाद अयोध्या पहुँचने का दृश्य रामराज्य के सपनों को साकार करने के दृढ़निश्चय और उसकी ओर प्रयाण की अभिव्यक्ति है। राम सँविधान की चेतना हैं, वह इसके आदर्शों में समाए हैं, मूलभूत अधिकारों के अध्याय के पहले पृष्ठ पर उनका चित्र मौलिक अधिकारों के माध्यम से रामराज्य की परिकल्पना को स्वर प्रदान करता है, जो नागरिकों को बराबरी का मौका व भेदभावों से मुक्ति प्रदाता है। राम लोकशाही के जीवंत प्रतीक हैं; राम ऐसे शासक हैं, जो यह मानकर चलते हैं कि उनसे भी गलती हो सकती है, वह अपनी प्रजा को यह अधिकार भी देते हैं कि वह अपने राजा को गलती करने से रोक दे- 'जौ अनीति कछु भाखहुँ भाई, तौ मोहि बरजहु भय बिसराई।' राज्यव्यवस्था का यह उच्चतम आदर्श है; हमारा संविधान यही आजादी अपने देशवासियों को देता है। सँविधान अपने नागरिकों से जो अपेक्षा करता है, वही सब कुछ रामरा