देव दिवसारंभ

 मकर संक्रान्ति पर विशेष

देव दिवसारंभ



       @मानव

भारतीय संस्कृति में

वेदों से लौकिक साहित्य तक

सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं;

संपूर्ण संसार के

जीवों की उत्पत्ति

पालन,पोषण,संहारक देव हैं।

संपूर्ण जगत की आत्मा हैं;

वेद उद्घोषित करते हैं-

सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च।

संपूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं।


जब भगवान सूर्य

धनु राशि का भ्रमण पूर्ण कर

मकर राशि में प्रवेश करते हैं,

वह काल मकर संक्रांति है।


मकर राशि में सूर्य का वास

एक मास का है,

राशि-क्रम में मकर राशि 

दशम राशि है,

दसवाँ स्थान आकाश

एवं कर्म का है।


मकर का अर्थ है

जो मंगल या कल्याण प्रदान करें,

मकर संक्रांति प्राकृतिक पर्व है,

तथापि भारतवर्ष में यह

धार्मिक पर्व है।


पुराणों एवं धर्मशास्त्रों में 

इसे अत्यधिक पुण्यदायी 

संक्रांति की मान्यता है,

क्योंकि यहीं से सूर्य

अपने गमन पथ के 

दक्षिणी मार्ग का

परित्याग करके

उत्तर मार्ग पर चलना 

आरंभ करते हैं,

अतएव यह उत्तरायण भी है।


यह समय देवताओं के लिए दिन

तथा असुरों के लिए रात्रि काल है;

यहीं से पृथ्वी वासियों के लिए भी

प्रकाश बढ़ने लगता है;

उत्तरायण में दिन

बढ़ने लगता है;

प्रकाश की वृद्धि

सर्वथा शुभ होती है।


वेदांग ज्योतिष के रचनाकार

महात्मा लगध ने

इस काल को

युगादि अर्थात युगारंभ का 

प्रथम दिन कहा था,

युगारंभ के साथ-साथ 

शिशिर ऋतु भी

इसी दिन से आरंभ होती है  

यही अयनी संक्रांति

तथा खिचड़ी पर्व भी है।


जिस मार्ग में प्रकाश स्वरूप अग्नि,

दिनाधिपति देवता

व शुक्लपक्षाधिपति देवता विद्यमान है,

वहीं छह मास का उत्तरायण है,

जहाँ तमस का आधिक्य है,

वहीं छह महीने का 

दक्षिणायन का काल है। 

 (श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण)


जब मनुष्य सद्विचार, 

विद्या,विवेक,वैराग्य, ज्ञानादि के

चिंतन में प्रवृत्त होता है, 

वही उत्तरायण की स्थिति है;

जब वह भोग-सुख,

काम, क्रोध में वृत्ति लगाता है,

वही दक्षिणायन है।


उत्तरायण काल

योगियों को अति प्रिय है,

      (व्यास)

शरशय्या पर पड़े भीष्म ने 

इच्छा मृत्यु वर होने के कारण

अपना शरीर नहीं छोड़ा, 

अपितु उत्तरायण की प्रतीक्षा की।


 ✒️मनोज श्रीवास्तव

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