रामकथा
रामकथा
@मानव
'राम' माने 'आत्म-ज्योति';
जो हमारे हृदय में प्रकाशित है,
वही राम हैं;
राम हमारे हृदय में जगमगा रहे हैं।
हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियों
और पाँच कर्मेन्द्रियों के
प्रतीक राजा दशरथ,
तथा जो कुशल हैं,
उन माँ 'कौशल्या' के यहाँ ही
श्री राम का जन्म हो सकता है,
यानी जहाँ पाँच ज्ञानेन्द्रियों
और पाँच कर्मेन्द्रियों के
संतुलित संचालन की
कुशलता हो सकती है
वहीं रामावतार सँभव है।
राम उस अयोध्या में जन्में,
जहाँ कोई युद्ध नहीं हो सकता;
जब मन सभी द्वंद्व अवस्था से मुक्त हो,
तभी हमारे भीतर
ज्ञान रुपी प्रकाश का उदय होता है।
राम हमारी 'आत्मा' हैं,
लक्ष्मण 'सजगता' हैं,
सीताजी 'मन' हैं,
और रावण 'अहंकार'
व 'नकारात्मकता' का प्रतीक हैं।
मन का स्वभाव डगमगाना है,
मन रूपी सीताजी
सोने के मृग पर मोहित हो गईं;
अहंकार रुपी रावण
मन रुपी सीताजी का
हरण कर उन्हें ले गया;
इस प्रकार मन रुपी सीता जी,
आत्मा रूपी राम से दूर हो गई।
तब 'पवनपुत्र' हनुमान जी ने
सीताजी को वापस लाने में
श्री राम जी की सहायता की;
विश्वास और सजगता की सहायता से,
मन का आत्मा अर्थात राम के साथ
पुनः मिलन होता है।
भगवान राम ने एक अच्छे पुत्र,शिष्य
और राजा के गुणों का
आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया,
जिससे वे मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये।
एक प्रतिष्ठित राजा के रूप में
राम ने सदैव प्रजा के हित को
सर्वोपरि रखते हुए निर्णय लिये;
रामराज्य के आदर्श समाज की
स्थापना की,
जहाँ प्रत्येक व्यक्ति की
आवश्यकताओं की पूर्ति
सभी के लिए न्याय;
भ्रष्टाचार मुक्त
और अपराध अक्षम्य था।
✒️मनोज श्रीवास्तव
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