आत्मा की समृद्धि का पर्व

 अक्षय तृतीया पर्व पर

(१)

आत्मा की समृद्धि का पर्व


      @मानव

जिसका कभी क्षय नहीं होता

वह 'अक्षय' है;

आत्मा ही एकमात्र अक्षय है, 

जिसका क्षरण नहीं होता।

यह पर्व स्मरण कराता है

कि भौतिक समृद्धि से 

अधिक महत्वपूर्ण

हमारे आत्मा की समृद्धि है।


जो व्यक्ति उदार होता है, 

हमेशा दूसरों की

सहायता करता रहता है,

वह भी अक्षय पात्र ही है।


जब सच्ची भक्ति होती है,

वहाँ केवल आध्यात्मिक ही नहीं,

बल्कि भौतिक समृद्धि भी आती है;

यदि हमें अक्षय तृतीया के दिन

कुछ मिलता है

तो वह हमेशा बढ़ेगा।


इस संसार में जो है,

वास्तव में ‘कुछ भी नहीं’ है;

एक दिन हमें सब छोड़ जाना है,

हमारा शरीर इसी मिट्टी में 

वापस मिल जाना है;

हम  सदैव समृद्ध होते रहेंगे, 

क्योंकि हमारी‘आत्मा’शाश्वत है।


(२)

सकारात्मकता की यात्रा:

चार धाम यात्रा


        @मानव

जीवन के एकमात्र ध्येय 

भगवद्तत्व एवं भगवद्प्रेम की 

प्राप्ति का हेतु 

चारधाम यात्रा है;

"मोह,माया,रागादि जैसे 

सांसारिक बंधनों से

मुक्ति के लिए

चारधाम यात्रा करनी चाहिए।"

('स्कंद पुराण' के 'केदारखंड')


चारधाम का पहला पड़ाव

यमुनोत्री धाम है;

यमुना को भक्ति का

उद्गम माना गया है;

अंतर्मन में भक्ति का

संचार होने पर ही

ज्ञान के चक्षु खुलते हैं


ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं 

सरस्वती स्वरूपा माँ गङ्गा;

जिसका अधिष्ठान

गंगोत्री धाम है।


ज्ञान ही जीव में

वैराग्य का भाव जगाता है, 

जिसकी प्राप्ति

भगवान केदारनाथ के

दर्शन से ही संभव है।


जीवन का अंतिम सोपान है मोक्ष

और वह श्रीहरि के चरणों में ही 

मिल सकता है;

जीवन में जब कुछ पाने की 

चाह शेष न रह जाए,

तब भगवान बदरी विशाल के

शरणागत हो जाना चाहिए, 

इसीलिए बदरिकाश्रम

भू-बैकुंठ भी कहा गया है।


 ✍️मनोज श्रीवास्तव

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