'सीतायाः चरितं महत्'

 सीता नवमी पर

'सीतायाः चरितं महत्'


       @मानव

'सीतायाः चरितं महत्'

  (वाल्मीकि)

रामकथा में महत्वपूर्ण चरित्र है

तो वह सीता का ही है। 


तुलसी दास ने सबसे पहले 

'सीता' शब्द का प्रयोग 

मंगलाचरण में किया 

'सीतारामगुणग्राम-

पुण्यारण्य विहारिणौ।'

वहाँ सीता राम दोनों की कथा है।


स्वतंत्र रूप में सीता की वंदना

तुलसी ने 'मानस' में की है 

उद्भववस्थिति

संहारकारिणीम्,

क्लेशहारिणीम्,

सर्वश्रेयस्करी सीतां

नतोऽहं रामवल्लभाम् ।। 


यह माँ

संसार को प्रकट करने वाली,

पैदा करने वाली,

फिर पालन करने वाली

अंततः सँहार करने वाली भी है।


वे क्लेश हरने वाली हैं,

सर्व कल्याण करने वाली हैं

सबका मङ्गल करने वाली हैं,

वे राम वल्लभा हैं

अतः उन्हें प्रणाम है।

 

सीता तो जगदम्बा हैं,

परमात्मा की

आह्लादिनी  शक्ति हैं,

पतञ्जलि के योगसूत्र के

पाँच स्वाभाविक क्लेश

राग,द्वेष, अविद्या,अस्मिता

और जिजीविषा 

माँ सीता का स्मरण मात्र से

मिट जाते हैं।


'मानस' में जो प्रधान पात्र हैं, 

उनका श्रेय (कल्याण) 

प्रत्यक्ष या परोक्ष

सीता ने ही किया है;

उनके श्रेय का प्रथम पात्र

सुग्रीव हैं जिन्हें देखकर 

रावण अपहृत जानकी

अपने वस्त्रालंकार 

सुग्रीव पर फेंकती हैं;

यह उनके श्रेय का श्रीगणेश है;

अंगद का श्रेय भी

माँ जानकी ने किया।


हनुमानजी पर तो

माँ की कृपा बरस पड़ी है;

उनको सबसे बड़ा श्रेय है

कि राम उनसे बहुत प्रेम करेंगे;


सती ने सीता का वेश लिया, 

तो आध्यात्मिक लाभ हो गया;

खोखली बौद्धिकता समाप्त हो गई;

शरणागत श्रद्धा का जन्म हुआ

तो यह श्रेय हुआ।


रावण सीता का भक्त बना

इसलिए उसका श्रेय हुआ; 

सीता का ही स्मरण 

कुम्भकर्ण ने किया

सीता ने उसका भी श्रेय किया।


जब रावण नहीं मरता,

तब श्रीराम दुर्गापूजा करते हैं;

परम शक्ति ने ही

भगवान श्रीराम को जिताया;

यह शक्ति सीता ही तो हैं। 

अतः औरों का श्रेय तो किया ही, 

रामजी का श्रेय

सीता ने ही किया है।


सर्व का श्रेय करने वाली 

सीता जी से तुलसी 

मंगलाचरण में कहते हैं,

माँ तुम्हें प्रणाम करता हूँ, 

नमन करता हूँ।


 ✍️मनोज श्रीवास्तव

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