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शिवत्व की साधना

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  शिवत्व की साधना         @मानव शिव निराकार ज्योति स्वरूप हैं; वे शिव ज्ञान व योग सिखाकर मनुष्यों में सतयुगी दिव्य गुण व दैवी संस्कारों को पुनः विकसित करते हैं।  निराकार ज्योतिर्लिंग शिव को स्थूल शिवलिंग मूर्ति-रूप में  स्थापित किया जाता है  और उनके दिव्य वाहन  नंदी को बैठाया जाता है। ज्ञान सूर्य ज्योति स्वरूप शिव अपने ईश्वरीय ज्ञान व शिक्षा के प्रकाश द्वारा  मनुष्यों के आसुरी अवगुणों को सद्गुण, दैवी चरित्र व दैवी संस्कारों में बदलते हैं। श्रावण मास में हुए सागर मंथन का उल्लेख हमें बताता है कि हर व्यक्ति में विचार-मंथन चलता रहता है; मनुष्य के अंदर दैवी और आसुरी प्रवृतियों के बीच खींचतान होती रहती है; मनुष्य जब शिव परमात्मा से योगयुक्त होकर ज्ञान अमृत को आत्मसात करता है और आसुरी अवगुण रूपी  विष को शिव अर्पण करता है, तब शिव उसके सभी विष  हर लेते हैं और उसे दैवीगुण युक्त  नीलकण्ठ बना देते हैं।    ~मनोज श्रीवास्तव

व्याप्तम् येन चराचरम्

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  गुरु पूर्णिमा पर विशेष व्याप्तम् येन चराचरम्         @मानव (१) आदिगुरु शिव द्वारा  दक्षिणामूर्ति रूप में समस्त ऋषि मुनियों को  शिवज्ञान प्रदान दिवस की  स्मृति है गुरु पूर्णिमा महापर्व, यह वेदव्यास का जन्मदिन भी है जो विष्णु अंश माने जाते हैं। गुरु पूर्णिमा पर्व पर प्रकृति जलवर्षण से नूतनता का आधान करना  प्रारंभ करती है, अत: गुरु शरणागति प्राप्त कर अध्यात्म साधना रूपी  नवीन गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र रूपी बीज को  अपने भीतर पल्लवित एवं पुष्पित करना चाहिए। (२) गुरू शब्द का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना;  गुरु तत्व को ब्रह्म समान कहा गया है; गुरु: साक्षात् परब्रह्म। गुरु तत्व है,  ज्ञान हैं, ज्योति पुञ्ज हैं, जो सम्पूर्ण चराचर जगत में व्याप्त हैं, अखण्ड मण्डलाकारम्  व्याप्तं येन चराचरम् । यदि चिन्तामणि मिल जाए  तो समस्त स्वर्ग सुख मिल जाते हैं, यदि गुरु तत्व प्राप्त हो जाय तो बैकुण्ठ प्राप्त हो जाता है, जो योगियों को भी दुर्लभ है।        ( भागवत महापुराण)   गुरु बिना व्यक्ति  भवसागर नहीं तर सकता भले वह ब्रह्मा शिव सदृश हो गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई।  जौ विरंचि संकर सम होई।