शिवत्व की साधना


 शिवत्व की साधना


       @मानव

शिव निराकार

ज्योति स्वरूप हैं;

वे शिव ज्ञान

व योग सिखाकर

मनुष्यों में सतयुगी

दिव्य गुण

व दैवी संस्कारों को

पुनः विकसित करते हैं। 


निराकार ज्योतिर्लिंग

शिव को

स्थूल शिवलिंग मूर्ति-रूप में 

स्थापित किया जाता है 

और उनके दिव्य वाहन 

नंदी को बैठाया जाता है।


ज्ञान सूर्य ज्योति स्वरूप शिव

अपने ईश्वरीय ज्ञान

व शिक्षा के प्रकाश द्वारा 

मनुष्यों के आसुरी अवगुणों को

सद्गुण,

दैवी चरित्र

व दैवी संस्कारों में

बदलते हैं।


श्रावण मास में हुए

सागर मंथन का उल्लेख

हमें बताता है कि

हर व्यक्ति में

विचार-मंथन चलता रहता है;

मनुष्य के अंदर दैवी

और आसुरी प्रवृतियों के बीच

खींचतान होती रहती है;

मनुष्य जब शिव परमात्मा से

योगयुक्त होकर

ज्ञान अमृत को

आत्मसात करता है

और आसुरी अवगुण रूपी 

विष को शिव अर्पण करता है,

तब शिव उसके सभी विष 

हर लेते हैं

और उसे दैवीगुण युक्त 

नीलकण्ठ बना देते हैं। 


 ~मनोज श्रीवास्तव

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