व्याप्तम् येन चराचरम्


 गुरु पूर्णिमा पर विशेष

व्याप्तम् येन चराचरम्


        @मानव

(१)

आदिगुरु शिव द्वारा 

दक्षिणामूर्ति रूप में

समस्त ऋषि मुनियों को 

शिवज्ञान प्रदान दिवस की 

स्मृति है गुरु पूर्णिमा महापर्व,

यह वेदव्यास का जन्मदिन भी है

जो विष्णु अंश माने जाते हैं।


गुरु पूर्णिमा पर्व पर

प्रकृति जलवर्षण से

नूतनता का आधान करना 

प्रारंभ करती है,

अत: गुरु शरणागति प्राप्त कर

अध्यात्म साधना रूपी 

नवीन गुरु द्वारा

प्रदत्त मंत्र रूपी बीज को 

अपने भीतर पल्लवित

एवं पुष्पित करना चाहिए।


(२)

गुरू शब्द का अर्थ है

अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना; 

गुरु तत्व को

ब्रह्म समान कहा गया है;

गुरु: साक्षात् परब्रह्म।


गुरु तत्व है, 

ज्ञान हैं,

ज्योति पुञ्ज हैं,

जो सम्पूर्ण चराचर जगत में व्याप्त हैं,

अखण्ड मण्डलाकारम् 

व्याप्तं येन चराचरम् ।


यदि चिन्तामणि मिल जाए 

तो समस्त स्वर्ग सुख मिल जाते हैं,

यदि गुरु तत्व प्राप्त हो जाय

तो बैकुण्ठ प्राप्त हो जाता है,

जो योगियों को भी दुर्लभ है।

       (भागवत महापुराण) 


गुरु बिना व्यक्ति 

भवसागर नहीं तर सकता

भले वह ब्रह्मा शिव सदृश हो

गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई। 

जौ विरंचि संकर सम होई। 

        (श्रीरामचरित मानस )


जिस ज्ञान की प्राप्ति के बाद 

मोह उत्पन्न न हो,

दुःखों का शमन हो जाए,

परब्रह्म अर्थात स्वयं के स्वरूप की

अनुभूति हो जाए,

ऐसे ज्ञान की उपलब्धि

गुरु-कृपा से ही संभव है।

 

चराचर जगत की

दो प्रकार की विद्याएं -

परा और अपरा

उपनिषदों में 

श्रेय तथा प्रेय कही गई हैं,

इन विद्याओं का ज्ञान देकर 

शिष्य को मोक्ष दिलाने वाला 

गुरु दुर्लभ है,

इसलिए दुर्लभ सहजावस्था भी

गुरु तत्व की कृपा बिना 

प्राप्त करना असंभव है।


 ~मनोज श्रीवास्तव

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