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Showing posts from July, 2024

विश्व के नाथ

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  विश्व के नाथ        @मानव भगवान शिव ही सृष्टि के आदि देव हैं; विश्व का नाथ बनने की सामर्थ्य केवल शिव में ही है; वे सबके हैं और सब उनके। आसुरी प्रवृत्तियाँ जब चरम पर पहुंच जाती हैं,  तब असुर एवं अभिमानियों का पतन होता है और दैवीय संपदा का युग आता है। यह सृष्टि चक्र है, जो चलता रहता है; शिव करुणा के सागर हैं; अपने भक्तों के लिए उनकी दया अपार है। देवाधिदेव इतने सरल हैं कि जो भी भक्त उनका पूजन-अर्चन करता है, उसको पुण्यफल की अनुभूति अवश्य कराते हैं। भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले  हलाहल को कण्ठ में धारण किया था और उसकी गर्मी को शाँत करने के लिए उन्होंने गंगा में स्नान किया;  गंगा धरती पर आईं तो उन्होंने ही अपनी जटाओं में धारण किया था; इसीलिए गंगाजल उन्हें विशेष प्रिय है।  ✒️मनोज श्रीवास्तव
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  सावन का प्रथम सोमवार शिव सन्देश        @मानव श्रावण मास प्रकृति के  नवजीवन का प्रतीक है, जो भगवान शिव की  आराधना को समर्पित है  और यह माह शिव को अत्यंत प्रिय है।  श्रावण में शिवलिंग पर जल चढ़ाने और पूजा करने से शुद्धि,बुद्धि,समृद्धि और मानसिक शाँति प्राप्त होती है। शिव,संहारक और सृजनकर्ता दोनों हैं; शिव का शाँत प्रभामण्डल संसार के चक्र का प्रतीक है; उनकी लंबी-घनी जटाएँ ऊर्जा और गतिशीलता को दर्शाती हैं। उनके दाहिने हाथ का डमरू  सँपूर्ण मानवता को अपनी लयबद्ध गति से  अपनी ओर आकर्षित करता है। बायीं भुजा में धारण की हुई अग्नि संहारक यानी संपूर्ण ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की शक्ति का प्रतीक है। एक पैर के नीचे कुचली हुई आकृति भ्रम और सांसारिक विकर्षणों से दूर रहने का संदेश देती है।  शिव के एक कान में नर कुंडल और दूसरे में नारी कुंडल है,  जो नर और नारी की समानता अर्थात अर्धनारीश्वर का  प्रतिनिधित्व करते हैं। शिव की भुजा के चारों ओर  लिपटा हुआ सर्प कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक है, जो सभी की रीढ़ में  सुप्तावस्था में पड़ी है। शिव ने दाहिने हाथ में  'अभयमुद्रा' बनाई है, जो भक्तों को भयमुक्त

बंदउँ गुरुपद

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  गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर बंदउँ गुरुपद         @मानव आध्यात्मिक प्रगति के लिए सद्गुरु-सहायता आवश्यक है; ‘गुरु’ अपने शिष्य के अज्ञान के अंधकार को दूर कर उसमें सद्ज्ञान का प्रकाश भर देता है; इसलिए वह वंदनीय  अभिनंदनीय हो जाता है। गुकार अंधकार का वाचक है और रुकार तेज व प्रकाश का; इस प्रकार गुरु ही अज्ञान का नाश करने वाले  ब्रह्म हैं, इसीलिए ‘गुरु-चरण’ सर्वश्रेष्ठ हैं। सद्गुरु देहधारी होते हुए भी  असामान्य मनुष्य हैं; वह नर रूप में नारायण हैं; उनके प्रति गहरी श्रद्धा के साथ स्वयं को अर्पित करके ही उनके वचनों से तत्वबोध होता है।  गुरुदेव के चरण की ही नहीं,  उनके चरण धूलि की भी महत्ता है बंदऊ गुरुपद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥  ( गोस्वामी तुलसीदास ) गुरु चरणरज को श्रद्धाभाव से धारण किया जाए, तो जीवन में कई तत्व प्रकट होते हैं। पहला तत्व सुरुचि है, आज हमारी रुचियाँ मोह और इंद्रिय विषयों की ओर हैं; सुरुचि के जाग्रत होते ही  उच्चस्तरीय जीवन के प्रति  रुचि जाग्रत होती है। दूसरा तत्व है-सुवास; सद्गुरु चरणों की धूलि का  महत्व समझ में आते ही  जीवन सुगंधित हो जाता है; वासनाओं व कामना