बंदउँ गुरुपद
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर
बंदउँ गुरुपद
@मानव
आध्यात्मिक प्रगति के लिए
सद्गुरु-सहायता आवश्यक है;
‘गुरु’ अपने शिष्य के
अज्ञान के अंधकार को दूर कर
उसमें सद्ज्ञान का प्रकाश भर देता है;
इसलिए वह वंदनीय
अभिनंदनीय हो जाता है।
गुकार अंधकार का वाचक है
और रुकार तेज व प्रकाश का;
इस प्रकार गुरु ही
अज्ञान का नाश करने वाले
ब्रह्म हैं,
इसीलिए ‘गुरु-चरण’ सर्वश्रेष्ठ हैं।
सद्गुरु देहधारी होते हुए भी
असामान्य मनुष्य हैं;
वह नर रूप में नारायण हैं;
उनके प्रति गहरी श्रद्धा के साथ
स्वयं को अर्पित करके ही
उनके वचनों से तत्वबोध होता है।
गुरुदेव के चरण की ही नहीं,
उनके चरण धूलि की भी महत्ता है
बंदऊ गुरुपद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
( गोस्वामी तुलसीदास)
गुरु चरणरज को
श्रद्धाभाव से धारण किया जाए,
तो जीवन में कई तत्व
प्रकट होते हैं।
पहला तत्व सुरुचि है,
आज हमारी रुचियाँ
मोह और इंद्रिय विषयों की ओर हैं;
सुरुचि के जाग्रत होते ही
उच्चस्तरीय जीवन के प्रति
रुचि जाग्रत होती है।
दूसरा तत्व है-सुवास;
सद्गुरु चरणों की धूलि का
महत्व समझ में आते ही
जीवन सुगंधित हो जाता है;
वासनाओं व कामनाओं की
मलिन,दूषित दुर्गंध
मिटने लगती है।
इसके साथ तीसरा तत्व
प्रकट होता है-
सरसता का,
संवेदना का;
निष्ठुरता विलीन होती है,
संवेदना जाग्रत होती है।
इन सारे तत्वों के साथ
विकसित होता है-अनुराग,
अपने गुरुदेव के प्रति;
जीवन में गुरुभक्ति
तरंगित होती है
और जीवन में कल्याण
व आनंद प्रकट होते हैं।
यह गुरुचरण-रज
मन रूपी दर्पण के मैल को
दूर करने वाली है;
गुरुचरणों की कृपा से
तत्वज्ञान,
ब्रह्मतादात्म्य,
ईश्वर कृपा
सभी कुछ सुलभ हो जाती है;
यह पावन गुरु पूर्णिमा,
गुरुचरणों की इसी कृपा की
अनुभूति का पर्व है।
✒️मनोज श्रीवास्तव
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