सावन का प्रथम सोमवार

शिव सन्देश


       @मानव

श्रावण मास प्रकृति के 

नवजीवन का प्रतीक है,

जो भगवान शिव की 

आराधना को समर्पित है 

और यह माह

शिव को अत्यंत प्रिय है। 


श्रावण में शिवलिंग पर

जल चढ़ाने और पूजा करने से

शुद्धि,बुद्धि,समृद्धि

और मानसिक शाँति प्राप्त होती है।


शिव,संहारक

और सृजनकर्ता दोनों हैं;

शिव का शाँत प्रभामण्डल

संसार के चक्र का प्रतीक है;

उनकी लंबी-घनी जटाएँ ऊर्जा

और गतिशीलता को दर्शाती हैं।


उनके दाहिने हाथ का डमरू 

सँपूर्ण मानवता को

अपनी लयबद्ध गति से 

अपनी ओर आकर्षित करता है।


बायीं भुजा में

धारण की हुई अग्नि संहारक

यानी संपूर्ण ब्रह्माण्ड को

नष्ट करने की शक्ति का प्रतीक है।


एक पैर के नीचे

कुचली हुई आकृति

भ्रम और सांसारिक विकर्षणों से

दूर रहने का संदेश देती है। 


शिव के एक कान में नर कुंडल

और दूसरे में नारी कुंडल है, 

जो नर और नारी की समानता

अर्थात अर्धनारीश्वर का 

प्रतिनिधित्व करते हैं।


शिव की भुजा के चारों ओर 

लिपटा हुआ सर्प

कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक है,

जो सभी की रीढ़ में 

सुप्तावस्था में पड़ी है।


शिव ने दाहिने हाथ में 

'अभयमुद्रा' बनाई है,

जो भक्तों को

भयमुक्त जीवन जीने के साथ

अभय होने का

वरदान प्रदान करते हैं।


शिव की नटराज मुद्रा में 

उनका उठा हुआ पैर

और बायाँ हाथ

शरणागति का

दिव्य संदेश देता है।


 ✍️मनोज श्रीवास्तव

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