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Showing posts from April, 2022

यदि जीवन से है प्यार

यदि जीवन से है प्यार! यदि जीवन से है प्यार सुननी होगी धरती की सिसकी करनी होगी उसकी रक्षा स्वजीवन निमित्त।  प्रकृति  जीवन की संजीवनी है, भूमि माता है,  उसकी रक्षा और देखभाल हर प्राणी के लिए लाभकर है। तभी तो  प्रकृति और धरती के प्रति दायित्व का निर्वहन नागरिक कर्तव्य है, अतः  प्रकृति के हितों की रक्षा के  प्रावधानों की मजबूती अपेक्षित है। मनोज श्रीवास्तव

पृथ्वी

 पृथ्वी-दिवस पर विशेष पृथ्वी ! सूर्य का औसत ग्रह, पर ऋग्वेद की महीमाता। जीवों को प्रश्रय व पोषण  प्रदान करती रहस्यमय अस्मिता। वैभवकारी गुणों के कारण  आराध्य देवता। प्रजननकारी और उपचारात्मक  गुणों का खजाना। जिसके अविरल स्पर्श से  पुलकित उमंगित जीव चेतना।  यह है जीवों और वनस्पतियों में  अद्भुत साहचर्य का अनूठा नमूना। मनोज श्रीवास्तव

पावन नवरात्र

पावन नवरात्र (१) नवरात्र! शक्ति उपासना-पर्व, प्रकृति-उपासना व योग का आग्रह, सात्विक आहार से शक्ति-अर्जन-सुअवसर, तामसी वृत्तियों से दूर रहने का संदेश, दुर्व्यसन-मुक्ति का प्रदर्शक। (२) शक्ति! कण-कण का अहसास, ब्रह्माण्ड का सञ्चालक, शरीर की इंद्रियों का केन्द्रक, जिसकी न्यूनता से शरीर मृत-पिण्ड, जिसके अभाव में "शिव" भी "शव", जिसका अभाव ही मृत्यु, इसी शक्ति उपासना का पर्व है नवरात्रि! (३)  नारी-महिमा व सम्मान का पर्व, "नारी-अबला" नकारने का पर्व, आततायी-संहार को आतुर दैवीय शक्ति, नारी सम्मान प्रतिस्थापक, मङ्गल सन्देश का महोत्सव, नवरात्र! मनोज श्रीवास्तव

पावन रामनवमी पर

  पावन रामनवमी पर मन में जो आएं और बस (रम) जाएं वही राम हैं। "राम" शब्द का उच्चारण करते समय "रा" कहने पर मुँह खुलता है और "म" कहने पर बंद होता है।"रा" से ग्रहण और "म" से धारण करना होता है।जो ग्रहण करना और उसे धारण करना सिखाए वही "राम" है।  राम हमारी आस्था के प्रतीक हैं।राम जन-जन के नायक हैं।राम के बाल रूप की कल्पना ही "लोक लजावन हारे" है।उनका स्वरूप ही मर्यादा,शील,त्याग-तप, उच्चादर्श, पावन-चरित्र,परमार्थ व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की झाँकी है। अयोध्या नगरी उन्हीं राम के अस्तित्व को साकार रूप देती एक भावभूमि है,एक काव्य है,एक विचार है जो रामनीति का पोषण करती है व राजसत्ता के प्रति वैराग्य का दृष्टिकोण देती है।  आज पावन राम नवमी पर्व के अवसर पर इसी अयोध्या की धरा पर बाल राम के विविध रूपों की आकर्षक झाँकी जो मैंने सहेजी है प्रस्तुत है-  १- राम जन्मभूमि अस्थाई मंदिर में रामलला के निकट से दर्शन  २-राम जन्मभूमि अस्थायी मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान रामलला ३- रामभद्र की कुल देवी के मंदिर देवकाली में शयन मुद्रा में बालक राम ४-

नव संवत्सर

  नव संवत्सर ! ब्रह्माण्ड की  उत्पत्ति का दिन। सृष्टि का  प्रथम दिवस। उत्सव का  प्रकृति के साथ समन्वय। संकल्प  व साधना का दिन। माधव ऋतु! माधव यानी परब्रह्म पूरी सृष्टि में  बसंत बनकर  छा जाता है। चंद्रमा की कलाएं  अपनी शीतलता  और स्निग्धता में  ईश्वरीय चिंतन निमित्त आध्यात्मिक वातावरण का  सर्जन करने लगती है। सृष्टि में स्पंदन  आ विराजता है। चैत्र की गंधवाही वायु से  हर चित्त आह्लादित होता है। प्रकृति में  मिलन और सौंदर्य की आतुरता उमगती है। तभी नूतन वर्ष की  अनुभूति होती है। मनोज श्रीवास्तव