नव संवत्सर
नव संवत्सर !
ब्रह्माण्ड की
उत्पत्ति का दिन।
सृष्टि का
प्रथम दिवस।
उत्सव का
प्रकृति के साथ समन्वय।
संकल्प
व साधना का दिन।
माधव ऋतु!
माधव यानी परब्रह्म
पूरी सृष्टि में
बसंत बनकर
छा जाता है।
चंद्रमा की कलाएं
अपनी शीतलता
और स्निग्धता में
ईश्वरीय चिंतन निमित्त
आध्यात्मिक वातावरण का
सर्जन करने लगती है।
सृष्टि में स्पंदन
आ विराजता है।
चैत्र की गंधवाही वायु से
हर चित्त आह्लादित होता है।
प्रकृति में
मिलन और सौंदर्य की आतुरता उमगती है।
तभी नूतन वर्ष की
अनुभूति होती है।
मनोज श्रीवास्तव
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