रथयात्रा का सांसारिक सरोकार
भगवान जगन्नाथ रथयात्रा पर विशेष रथयात्रा का सांसारिक सरोकार @मनोज जन्म से अंत तक मानव जीवन यात्रामय है। मानव शरीर में परमात्मा की उपस्थिति सूक्ष्म रूप में हैं, उसे ले चलने की दिशा पारिवारिक तथा सामाजिक परिवेश के साथ स्वविवेक से निर्धारित करना पड़ता है। मनुष्य देह एवं चेतना शक्ति के मिलने से रथ रूपी शरीर की यात्रा अग्रसर होती है, इसमें गति के लिए पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, ज्ञानेन्द्रियों की लगाम मन से जुड़ी रहती है, मन की नियंत्रक हमारी बुद्धि है, मन और बुद्धि के ऊपर विवेक ध्वज-सम है; इस स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर के समन्वय से जीवन यात्रा संचालित होती है। स्थूल शरीर जड़ है उसे सूक्ष्म शक्ति संचालित करती है, यानी सूक्ष्म शक्ति सारथी की भूमिका में है; इसी सूक्ष्म शक्ति को तेजस्वी बनाने के लिए मन को साधना अत्यंत आवश्यक है। मन ही अश्व है इसे विवेक रूपी लगाम से नियंत्रित रखा जाए, तो जीवन यात्रा की दिशा सकारात्मक होती है, तभी जीवन यात्रा गंतव्य तक पहुँच पाती है। ~मनोज श्रीवास्तव