कबीर-दृष्टि
कबीर जयन्ती पर विशेष,
कबीर-दृष्टि
@मानव
प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक
दृष्टिवादी संत कबीर
अतिवाद विरोधी हैं।
अध्यात्म जगत
स्पष्ट करता है
कि मनुष्य लोकेषणा,
वित्तेषणा,
और पुत्रेषणा के चलते
आनन्द से दूर होता है,
जो ब्रह्मानन्द का अंश है,
कबीर उसी ब्रह्मानन्द को
पहाड़ मानकर
पूजने की बात करते हैं;
कबीर का "साँई"
अंतर्जगत का मालिक है;
जबकि उनकी "चाकी"
अंतर्जगत की चक्की है,
मन और मस्तिष्क की चक्की से
जहाँ विवेक का
पदार्थ निकलता है।
संत कबीर की उल्टबाँसी
मानव के गर्भ में आने से लेकर
मृत्यु तक के प्राकृतिक स्वरूप को
प्रदर्शित करती है।
प्रकृति में व्याप्त ऊर्जा को
जब मनुष्य ग्रहण करने लगता है,
तब संवेदना,
मानवीय मूल्यों
एवं दैवीय गुणों की बरसात
उस पर होने लगती है।
सन्त कबीर के दोहों में
वर्तमान इंटरनेट युग के
चिप जैसी समाहित
विशाल क्षमता है
जिसमें मानव जीवन को
सार्थक बनाने का भाव
समाहित है।
~मनोज श्रीवास्तव
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