योग
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष
योग माहात्म्य
@मानव
चितवृत्ति का
ईश्वर में विलीन हो जाना
योग है;
भगवान की अहैतुकी कृपा से
जो महायोग बनता है।
न बुद्धि की सत्ता हो
ना मन की चंचलता
चित्त में संस्कार शेष न रहे
यही स्थिति योगी की है,
जो ईश्वर से एकाकार होकर
प्रेम रस से भर जाता है,
वाणी अवरुद्ध हो जाती है,
मन रिक्त हो जाता है ।
भक्त का योग
जब भगवान से होता है
मन, बुद्धि और चित्त के साथ
साधन अहम् शून्य हो जाता है,
मन,बुद्धि,
चित्त और अहम् की स्वीकृति
केवल साधन काल में होती है
पर साध्य की परम प्राप्ति में
इनकी विस्मृति ही योग है।
संयम की प्रामाणिकता भी
योग से ही सिद्ध होती है,
ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों की
अर्जित शक्ति का एकत्रीकरण
योग द्वारा किया जाता है
योग चाहे ध्यान-रूप में हो
या व्यायाम-प्राणायाम रूप में
उसकी शक्ति को एकत्र करके
उसका उपयोग ही
वास्तविक योग है।
जब तक योग जीवन में
आत्मसंयम न आ जाए
तब तक क्रियात्मक योग
मात्र शरीर संवर्धन होगा।
वह योग कुयोग है
वह ज्ञान अज्ञान है
जिसमें भगवान के प्रति
प्रेम और समर्पण की
प्रधानता न हो,
यदि शरीर का योग
भगवान से जुड़कर
ध्यान योग बन जाए,
योग-शक्तियों का उपयोग
प्राणि सेवा का उपदान बन
सहजयोग हो जाएगा।
~मनोज श्रीवास्तव
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