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Showing posts from December, 2023

गीता तत्त्व

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  गीता जयंती पर गीता तत्त्व        @मानव श्रीकृष्णु और अर्जुन के मध्य काव्यात्मक संवाद, जिसमें जीवन प्रबंधन से जुड़े सभी सूत्रों का समावेश है; मानव जीवन की दुविधाओं व सभी समस्याओं का  समाधान संभव है। अर्जुन के सोच में सुधार,  मानसिक उलझनों से मुक्ति, स्वधर्म की पुनर्प्राप्ति एवं पुनस्थिति, अपने कर्तव्य कर्म की स्मृति इत्यादि से चिह्नित  आत्म-विजय और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण से हुई; इसका विश्लेषण ही गीता की पूर्णता है। गीता साक्षात भगवान की वाणी है, नारायण का मनुष्य को  सीधा संबोधन है; ब्रह्म को प्राप्त कराने वाली  ब्रह्मविद्या है। विकट समस्याओं का समाधान, आदर्श समाज निर्माण  और अंततः भगवत्कृपा  व भगवान को पाने का माध्यम है। गीता का अनुकरण श्री,विजय,विभूति और नीति की गारंटी है।  यह कर्तव्य पूर्ति लिए  सर्वश्रेष्ठ प्रोत्साहक है। मन में चलने वाले भीतरी युद्ध में ईश्वर सदा हमारे साथ रहते हैं और हमें विजय दिलाते हैं,  लेकिन बाहरी युद्ध तो स्वयं ही लड़ना पड़ता है,  इसमें कोई किसी की  सहायता नहीं कर सकता; यही गीता का तत्व है श्रीमद्भागवत गीता के  अध्याय बारह के भक्ति योग में  जब कृष्ण &quo

सुख का विस्तार

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  श्री राम विवाहोत्सव मार्गशीर्ष शुक्ल पँचमी सुख का विस्तार         @मानव सिया-राम ही हमारे आराध्य हैं हमारे आदर्श हैं! राम सीता का वैवाहिक जीवन भारतीय मूल्यों का आदर्श है; परिवार को बाँधे हुए ऐसा युगल जो परस्पर विश्वास और प्रेम के बल पर संघर्ष की यात्रा पूर्ण करता है। राम जानकी की जोड़ी  भारत का प्राण युगल है; भारतीय परंपरा में ब्याह का अर्थ है राम सिया का ब्याह ! हर बिटिया वैदेही है, हर वर मर्यादा पुरुषोत्तम राम ! सुनयना-जनक की सिया  और दशरथ-कौशल्या के राम! सीता जी का सुहाग, हर सुहागन का आशीर्वाद है, राम जी की मौरी हर बन्ने का सौभाग्य! राम-जानकी भारत की  संस्कृति में ऐसे समाए हैं  कि समूचे लोक की  सामाजिक व्यवस्था के  नायक-नायिका के रूप में  रीति-रिवाज,परंपराओं में  औदार्य के साथ प्रतिष्ठित हैं, भारत की लोकचेतना की  यात्रा करते हैं, जिसने बड़े ही आदर और सम्मान के साथ  सीताराम को संस्कृति के  रोम-रोम में बसा रखा है। सँसार में सुख का विस्तार ही राम विवाह का उद्देश्य है, तुलसीदास के शब्दों में यह पावा परम तत्व जनु जोगी है; यह सुख लंबे समय तक  रोगग्रस्त पड़े हुए रोगी को  मिले अमृत के समा

शिव अवतार:कालभैरव

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  काल भैरव जयंती पर विशेष शिव अवतार:कालभैरव         @मानव सनातन संस्कृति में विश्व का मूलाधार शिवतत्व है; परब्रह्म परमात्मा ही शिव हैं; इन्हें ही सदाशिव कहते हैं। भगवान शिव रक्षक एवं संहारक रूपों में सगुण रूप से भक्तों के  दर्शनार्थ प्रकट होते हैं।  सगुण रूपों के ध्यान,स्मरण, नाम जप,लीला चिंतन से  भक्त हृदय निर्मल हो जाता है; संसार में धर्म की स्थापना, अधर्म का विनाश,  आततायी असुरों के दमन के लिए तथा प्रेमी भक्तों की इच्छा पूर्ति हेतु भगवान सदाशिव विविध रूपों में अवतीर्ण होते हैं। भगवान शंकर अनादि अनंत तथा बुद्धि से परे होते हुए भी जगत की सृष्टि पालन एवं संहार हेतु विविध कल्पों में कभी एकादश रुद्र रूप में  तो कभी भूत,प्रेत,पिशाच, डाकिनी,शाकिनी,कुष्मांड, बेताल,भैरव,विनायक,  यातुधान, योगिनी आदि  रूपों में प्रकट होकर सृष्टि को संतुलित करते रहते हैं। भैरव अवतार भी शिव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को अंधकासुर वध हेतु स्वयं धारण करते हैं; यही तिथि भैरवाष्टमी या कालाष्टमी है। क्रोध के आवेग में  अवतरण होने से भयंकर स्वरूप के कारण वे कालभैरव कहलाते हैं।  (शतरुद्र संहिता, शिवपुराण) बाल रूप में ये बटु