गीता तत्त्व
गीता जयंती पर गीता तत्त्व @मानव श्रीकृष्णु और अर्जुन के मध्य काव्यात्मक संवाद, जिसमें जीवन प्रबंधन से जुड़े सभी सूत्रों का समावेश है; मानव जीवन की दुविधाओं व सभी समस्याओं का समाधान संभव है। अर्जुन के सोच में सुधार, मानसिक उलझनों से मुक्ति, स्वधर्म की पुनर्प्राप्ति एवं पुनस्थिति, अपने कर्तव्य कर्म की स्मृति इत्यादि से चिह्नित आत्म-विजय और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण से हुई; इसका विश्लेषण ही गीता की पूर्णता है। गीता साक्षात भगवान की वाणी है, नारायण का मनुष्य को सीधा संबोधन है; ब्रह्म को प्राप्त कराने वाली ब्रह्मविद्या है। विकट समस्याओं का समाधान, आदर्श समाज निर्माण और अंततः भगवत्कृपा व भगवान को पाने का माध्यम है। गीता का अनुकरण श्री,विजय,विभूति और नीति की गारंटी है। यह कर्तव्य पूर्ति लिए सर्वश्रेष्ठ प्रोत्साहक है। मन में चलने वाले भीतरी युद्ध में ईश्वर सदा हमारे साथ रहते हैं और हमें विजय दिलाते हैं, लेकिन बाहरी युद्ध तो स्वयं ही लड़ना पड़ता है, इसमें कोई किसी की सहायता नहीं कर सकता; यही गीता का तत्व है श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय बारह के भक्ति योग में जब कृष्ण &quo