सुख का विस्तार

 श्री राम विवाहोत्सव

मार्गशीर्ष शुक्ल पँचमी



सुख का विस्तार


       @मानव

सिया-राम ही हमारे आराध्य हैं

हमारे आदर्श हैं!

राम सीता का वैवाहिक जीवन

भारतीय मूल्यों का आदर्श है;

परिवार को बाँधे हुए

ऐसा युगल जो परस्पर विश्वास

और प्रेम के बल पर

संघर्ष की यात्रा पूर्ण करता है।


राम जानकी की जोड़ी 

भारत का प्राण युगल है;

भारतीय परंपरा में ब्याह का अर्थ है

राम सिया का ब्याह !

हर बिटिया वैदेही है,

हर वर मर्यादा पुरुषोत्तम राम !

सुनयना-जनक की सिया 

और दशरथ-कौशल्या के राम!

सीता जी का सुहाग,

हर सुहागन का आशीर्वाद है,

राम जी की मौरी

हर बन्ने का सौभाग्य!


राम-जानकी भारत की 

संस्कृति में ऐसे समाए हैं 

कि समूचे लोक की 

सामाजिक व्यवस्था के 

नायक-नायिका के रूप में 

रीति-रिवाज,परंपराओं में 

औदार्य के साथ प्रतिष्ठित हैं,

भारत की लोकचेतना की 

यात्रा करते हैं,

जिसने बड़े ही आदर

और सम्मान के साथ 

सीताराम को संस्कृति के 

रोम-रोम में बसा रखा है।


सँसार में सुख का विस्तार ही

राम विवाह का उद्देश्य है,

तुलसीदास के शब्दों में यह

पावा परम तत्व जनु जोगी है;

यह सुख लंबे समय तक 

रोगग्रस्त पड़े हुए रोगी को 

मिले अमृत के समान है

जो मृत्यु के भय से मुक्त हो गया है;

अंततः यह सुख अनन्त है।


श्रीराम अवतार की सम्पूर्णता में

श्री सीताराम विवाह,

मात्र दो शरीरों का मिलन नहीं

एक सेतु के रूप में है।

श्रीराम पुरुषार्थ के मोक्ष फल हैं,

सीता मोक्ष की क्रिया भक्ति हैं;

भक्ति बिना मोक्ष-सुख असंभव है।


श्री भरत पुरुषार्थ के धर्म फल हैं,

माण्डवी धर्म प्राप्ति की 

श्रद्धा क्रिया हैं,

श्रद्धा बिना धर्म

केवल प्रदर्शन का विषय होगा।


श्री लक्ष्मण पुरुषार्थ के काम फल हैं,

उर्मिला काम की क्रिया योग हैं;

योग क्रिया के साथ

जब तक काम नहीं जुड़ेगा, 

तब तक भगवान के प्रति 

समर्पित होकर

पूर्णता नहीं प्राप्त हो सकती।


शत्रुघ्न जी पुरुषार्थ के अर्थ फल हैं,

उनकी पत्नी श्रुतिकीर्ति 

अर्थप्राप्ति की दान-क्रिया हैं;

अर्थ का उपयोग जब तक 

समाज कल्याण और दान में

प्रयुक्त नहीं होगा,

तब तक अर्थ समाज में 

अनर्थ की सृष्टि करेगा।


श्रीराम के विवाह का तात्पर्य है

मोक्ष भक्ति के साथ जुड़े, 

धर्म श्रद्धा के साथ जुड़े, 

काम योग के साथ जुड़े 

और अर्थ दान के साथ जुड़े,

तभी समाज में सही संतुलन बनेगा। 


काम-लक्ष्मण

मोक्ष-राम की सेवा में रहे;

अर्थ-शत्रुघ्न

धर्म-भरत की सेवा में रहे;

यही सच्चा धर्म है,

भक्ति और ज्ञान है,

जिससे समाज संतुलित 

और सुखी रहेगा।


श्रीराम के विवाह का सुख 

केवल वही ले सकता है, 

जिसके जीवन में सुख का 

अधिष्ठान श्रीराम हैं

और जो सुख लेना नहीं, 

बल्कि देना जानता है;

सुख को बाँटने

और विस्तार करने की

श्रेष्ठ भावना ही

भक्त की भावना है।


 ✒️मनोज श्रीवास्तव

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