गीता तत्त्व
गीता जयंती पर
गीता तत्त्व
@मानव
श्रीकृष्णु और अर्जुन के मध्य
काव्यात्मक संवाद,
जिसमें जीवन प्रबंधन से जुड़े
सभी सूत्रों का समावेश है;
मानव जीवन की दुविधाओं
व सभी समस्याओं का
समाधान संभव है।
अर्जुन के सोच में सुधार,
मानसिक उलझनों से मुक्ति,
स्वधर्म की पुनर्प्राप्ति
एवं पुनस्थिति,
अपने कर्तव्य कर्म की स्मृति
इत्यादि से चिह्नित
आत्म-विजय
और भगवान के प्रति
पूर्ण समर्पण से हुई;
इसका विश्लेषण ही
गीता की पूर्णता है।
गीता साक्षात भगवान की वाणी है,
नारायण का मनुष्य को
सीधा संबोधन है;
ब्रह्म को प्राप्त कराने वाली
ब्रह्मविद्या है।
विकट समस्याओं का समाधान,
आदर्श समाज निर्माण
और अंततः भगवत्कृपा
व भगवान को पाने का माध्यम है।
गीता का अनुकरण
श्री,विजय,विभूति
और नीति की गारंटी है।
यह कर्तव्य पूर्ति लिए
सर्वश्रेष्ठ प्रोत्साहक है।
मन में चलने वाले
भीतरी युद्ध में
ईश्वर सदा हमारे साथ रहते हैं
और हमें विजय दिलाते हैं,
लेकिन बाहरी युद्ध तो
स्वयं ही लड़ना पड़ता है,
इसमें कोई किसी की
सहायता नहीं कर सकता;
यही गीता का तत्व है
श्रीमद्भागवत गीता के
अध्याय बारह के भक्ति योग में
जब कृष्ण "मैं" कहते हैं
तो वह उस आयाम की बात करते हैं
जिसमें साकार और निराकार
दोनों शामिल होते हैं।
वे सन्देश देते हैं
जो लोग मुझमें
अपने मन को एकाग्र करके
निरंतर मेरी पूजा
और भक्ति करते हैं
तथा स्वयं को मुझे
समर्पित कर देते हैं,
वे मेरे परम भक्त होते हैं।
जो लोग पूरे विश्वास के साथ
अपना मन मुझमें लगाते हैं
और मेरी भक्ति में लीन होते हैं,
उन्हें मैं जन्म- मृत्यु के
चक्र से मुक्त कर देता हूँ।'
जो अव्यक्त और निराकार होता है,
उसका अनुभव नहीं कर सकते,
उसमें सिर्फ विश्वास कर सकते हैं;
निराकार में गहरी भक्ति
और प्रेम को विकसित कर
उसे बनाए रखना
बहुत कठिन होगा;
अगर कोई निरंतर
निराकार की भक्ति कर सकता है,
तो वह भी मुझे पा सकता है।
अपनी भक्ति में स्थिरता के लिए
एक आकार,एक रूप,एक नाम की
जरूरत पड़ती है,
जिससे हम जुड़ सकें;
जीवित व्यक्ति के रूप में
उनका ध्यान करने पर
उन्हें प्राप्त करना
अधिक आसान है।
'जो लोग पूरे विश्वास के साथ
अपना मन मुझमें लगाते हैं
और मेरी भक्ति में लीन होते हैं,
उन्हें मैं जन्म और मृत्यु के
चक्र से मुक्ति दे देता हूँ'
हर पूर्ण आत्मज्ञानी जीव
किसी न किसी रूप में
यही कहता है।
क्रोध,घृणा या लालसा की
भावनाओं के
वशीभूत रहकर,
मुक्ति कठिन हो सकती है।
जब,आंतरिक आयामों की बात हो,
तो मैं उसका पूरा जिम्मा ले सकता हूँ,
पर जब बाह्य स्थितियों की बात हो,
तो हर किसी को
संघर्ष करना पड़ता है;
यही बात श्रीकृष्ण ने
गीता में कही है।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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