शिव अवतार:कालभैरव
काल भैरव जयंती पर विशेष
शिव अवतार:कालभैरव
@मानव
सनातन संस्कृति में
विश्व का मूलाधार शिवतत्व है;
परब्रह्म परमात्मा ही शिव हैं;
इन्हें ही सदाशिव कहते हैं।
भगवान शिव रक्षक
एवं संहारक रूपों में
सगुण रूप से भक्तों के
दर्शनार्थ प्रकट होते हैं।
सगुण रूपों के ध्यान,स्मरण,
नाम जप,लीला चिंतन से
भक्त हृदय निर्मल हो जाता है;
संसार में धर्म की स्थापना,
अधर्म का विनाश,
आततायी असुरों के दमन के लिए
तथा प्रेमी भक्तों की इच्छा पूर्ति हेतु
भगवान सदाशिव विविध रूपों में
अवतीर्ण होते हैं।
भगवान शंकर अनादि अनंत
तथा बुद्धि से परे होते हुए भी
जगत की सृष्टि
पालन एवं संहार हेतु
विविध कल्पों में
कभी एकादश रुद्र रूप में
तो कभी भूत,प्रेत,पिशाच,
डाकिनी,शाकिनी,कुष्मांड,
बेताल,भैरव,विनायक,
यातुधान, योगिनी आदि
रूपों में प्रकट होकर
सृष्टि को संतुलित करते रहते हैं।
भैरव अवतार भी शिव
मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को
अंधकासुर वध हेतु
स्वयं धारण करते हैं;
यही तिथि भैरवाष्टमी
या कालाष्टमी है।
क्रोध के आवेग में
अवतरण होने से
भयंकर स्वरूप के कारण
वे कालभैरव कहलाते हैं।
(शतरुद्र संहिता, शिवपुराण)
बाल रूप में ये बटुक भैरव,
आनन्द मुद्रा में आनन्द भैरव हैं;
काल भैरव की शक्ति भैरवी है
और ये शिवपुरी के कोतवाल हैं,
दण्ड धारण से ये दण्ड पाणि हैं,
कृषि सहायक श्वान वाहन होने से
ये कृषकों के देवता हैं,
ये दस महाविद्याओं से परिगणित हैं;
नाथपंथियों के ये आराध्य हैं।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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