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Showing posts from June, 2024

जीवन को पूर्णता प्रदाता योग

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 योग दिवस पर जीवन को पूर्णता प्रदाता योग          @मानव योग सबसे अच्छा और भरोसेमंद सहायक है,  यह हमें दुख और क्लेश से मुक्त करता है और सुखपूर्वक समग्रता या पूर्णता में जीने का मार्ग  प्रशस्त करता है। योगियों के हृदय में पवित्र मंदाकिनी के अविरल प्रवाह की तरह योग की धारा प्राचीन काल से अब तक प्रवाहित होती आ रही है।  योग भारतीय दर्शनों में से एक है; प्रायः सभी भारतीय दर्शन  उस सर्वव्यापी परम तत्व को  स्वीकार करते हैं। व्यक्ति और परम सत्ता में  एकात्मता होती है; योग मार्ग वह पाठ है, जो व्यक्ति-चैतन्य को विकसित और समृद्ध करता है, ताकि जीवन में सामञ्जस्य का अनुभव शामिल हो सके  और अंततः परम तत्व के साथ एकता का अनुभव हो सके।  उपनिषदों में वर्णित है कि हमारा अस्तित्व पाँच तत्वों से बनी रचना है;  योग का अभ्यास इन तत्वों के बीच पारस्परिक संतुलन और चैतन्य लाता है और अस्तित्व का केंद्र परम तत्व की ओर अग्रसर करता है; योग बाह्य से आंतरिक बुद्धि  और आंतरिक से बाह्य बुद्धि  की यात्रा है। योग-सूत्र ही अष्टांग योग है;  इसके आठ अंग हैं- यम,नियम,आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार, धारणा,ध्यान और समाधि;  साधक को इन

त्रिभुवन सुखदाता

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  पावन गङ्गा दशहरा पर त्रिभुवन सुखदाता        @मानव निर्मल और पवित्र है माँ गङ्गा का जल, अध्यात्म से लेकर विज्ञान तक इसके आगे नतमस्तक है; पूर्वजों के तर्पण से लेकर  पाप मुक्ति व मोक्ष प्रदान करने वाली माँ गङ्गा सौभाग्य का सूचक हैं। भारतीय ऋषि-महर्षियों को गङ्गा के वैज्ञानिक महत्व एवं अद्‌भुत प्राकृतिक संरचना का ज्ञान था, तभी तो शास्त्र-पुराणों में गङ्गा भारतीय संस्कृति का प्राण है। गङ्गा माँ भारत की प्राण हैं।  वह जीवनदायिनी और मोक्षप्रदायिनी हैं उनके दर्शन मात्र से पाप और शोक नष्ट हो जाते हैं। गङ्गा एक पवित्र नदी मात्र नहीं, बल्कि सभ्यता की अधिष्ठात्री हैं, जो आध्यात्मिक महत्व के कारण हमारी संस्कृति में आदर के  सर्वोच्च सोपान पर हैं। गङ्गा माँ के आँचल में  हर भारतीय शिशु की भाँति  अठखेलियाँ कर आशीर्वाद की आश्वस्ति पाता है, जिनके तट पर बैठ वह दुख-सुख सब कह पाता है, जिनके जल से अभिषेक कर  वह नई ऊर्जा से भर जाता है; गंग सकल मुद् मङ्गल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।।   (गोस्वामी तुलसीदास) भारत के लिए माँ गङ्गा किसी वरदान से कम नहीं हैं, वह सतयुग से लेकर आज तक करोड़ों श्रद्धालुओं को शांति,

शिवाजी राज्यारोहण :स्वाभिमान का अभिषेक

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ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी शालिवाहन शक संवत १५९६ (छह जून,1674 ई.)  शिवाजी राज्यारोहण :स्वाभिमान का अभिषेक         @मानव छत्रपति शिवाजी का नाम सुनते ही जहाँ वीरों की बाँहें फड़कने लगती थीं तो वहीं दुश्मनों के खेमे में  भगदड़ मच जाती थी; शिवाजी न सिर्फ जनतंत्र को  स्थापित करने में सफल हुए,  बल्कि उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि बुद्धि-कौशल,साहस व सांस्कृतिक उन्नयन के बलबूते कोई भी संगठन खड़ा किया जा सकता है। रायगढ़ दुर्ग में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की सिंहगर्जना थी, जो आज भी पूरे देश में गूँजती है। शिवाजी का राज्याभिषेक  भारतीय संस्कृति के इतिहास की अनमोल घटना है जो वेदकालीन राज्याभिषेक की याद दिलाता है; और जिसने भारत के जन-मन को बहुत ज्यादा प्रभावित किया।    यह उस दौर का ऐसा महान सांस्कृतिक और राजनीतिक महोत्सव था जिसका उल्लास आज तक बना हुआ है।  शिवाजी ने जिस तरह  स्वराज्य का संकल्प लेकर  मुगलों से लोहा लिया, हिंदुत्व-मूल्यों की रक्षा के लिए सदा संघर्ष करते रहे, उसी संकल्प से राज्यारोहण भी किया। राज्याभिषेक शिवाजी की ही बनाई हुई  महत्वाकांक्षी योजना थी,