जीवन को पूर्णता प्रदाता योग

 योग दिवस पर

जीवन को पूर्णता प्रदाता योग


         @मानव

योग सबसे अच्छा

और भरोसेमंद सहायक है, 

यह हमें दुख और क्लेश से

मुक्त करता है

और सुखपूर्वक समग्रता

या पूर्णता में जीने का मार्ग 

प्रशस्त करता है।


योगियों के हृदय में

पवित्र मंदाकिनी के

अविरल प्रवाह की तरह

योग की धारा

प्राचीन काल से अब तक

प्रवाहित होती आ रही है। 


योग भारतीय दर्शनों में से एक है;

प्रायः सभी भारतीय दर्शन 

उस सर्वव्यापी परम तत्व को 

स्वीकार करते हैं।


व्यक्ति और परम सत्ता में 

एकात्मता होती है;

योग मार्ग वह पाठ है,

जो व्यक्ति-चैतन्य को विकसित

और समृद्ध करता है,

ताकि जीवन में सामञ्जस्य का

अनुभव शामिल हो सके 

और अंततः परम तत्व के साथ

एकता का अनुभव हो सके। 


उपनिषदों में वर्णित है

कि हमारा अस्तित्व

पाँच तत्वों से बनी रचना है; 

योग का अभ्यास

इन तत्वों के बीच

पारस्परिक संतुलन

और चैतन्य लाता है

और अस्तित्व का केंद्र

परम तत्व की ओर

अग्रसर करता है;

योग बाह्य से आंतरिक बुद्धि 

और आंतरिक से बाह्य बुद्धि 

की यात्रा है।


योग-सूत्र ही अष्टांग योग है; 

इसके आठ अंग हैं-

यम,नियम,आसन,

प्राणायाम,प्रत्याहार,

धारणा,ध्यान और समाधि; 

साधक को इन पर 

समानांतर रूप से चलना चाहिए। 


योगाभ्यास का उद्देश्य 

साधक को आत्मावलोकन- 

अपने विचारों और व्यवहारों 

और उनके परिणामों को 

देखना-समझना भी होता है।


योग हमारे ऋषियों द्वारा प्रदत्त

ऐसा विज्ञान है

जो संपूर्ण मानव जाति का

उद्धार करने में समर्थ है।


योग से मनुष्य शारीरिक,मानसिक

तथा आत्मिक ऊर्जा को 

प्राप्त करता है;

इससे शरीर तथा मन की 

शुद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।


योग के मार्ग पर

निरंतर चलने से ही

जीवात्मा सत्,चित्,आनंद स्वरूप

ब्रह्म-साक्षात्कार करने में 

समर्थ बनता है।


योग दर्शन में वर्णित

योग के अंगों का

श्रद्धापूर्वक पालन करने से 

जीवन में आध्यात्मिक आनंद की

प्राप्ति होती है।


योग आनंदमय जीवन

जीने की कला है;

योग से ही जीवन में 

कुशलतापूर्वक कर्म करने की 

योग्यता प्राप्त होती है।


कर्मों की कुशलता का तात्पर्य है

कर्मों का संपादन

इस प्रकार से करना

कि जो हमारे बंधन का 

कारण न बनें।


वर्तमान की विकृत जीवनशैली से

शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य भी

विकृत हो गया है,

फलतः हमारा शरीर

शारीरिक-मानसिक 

व्याधियों से ग्रस्त है।


योग का अनुकरण

हमारे शरीर तथा मन को 

संतुलित तथा संयमित बनाकर

सुरक्षा कवच प्रदान करता है।


मानव शरीर को

धर्म के कार्य करने का

प्रधान साधन माना गया है; 

इसी शरीर में

दिव्य तत्व आत्मा का भी 

निवास स्थान है।


अतः मानव शरीर को

यज्ञ कर्म करने की

दिव्य नौका माना गया है;

योग शरीर रूपी इस दिव्य नाव को

नई स्फूर्ति तथा ऊर्जा से 

परिपूर्ण करता है।


मनुष्य स्वभाव से अपूर्ण होता है,

परंतु योग उसे पूर्ण बनाता है;

फिर वह स्वयं को खोज लेता है;

स्वयं अपने भीतर और सारे जगत् में

दिव्यता का दर्शन करने लगता है;

यही योग का अभीष्ट है।


योग से ही मानसिक 

एकाग्रता प्राप्त होती है, 

जिससे मनुष्य

साधना के मार्ग पर

आगे बढ़ता है।


ब्रह्माण्ड के कण-कण में 

विराजमान ईश्वर के

आनंद की अनुभूति करने में 

मानव समर्थ बनता है।


 ✍️मनोज श्रीवास्तव

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