त्रिभुवन सुखदाता

 पावन गङ्गा दशहरा पर

त्रिभुवन सुखदाता


       @मानव

निर्मल और पवित्र है

माँ गङ्गा का जल,

अध्यात्म से लेकर विज्ञान तक

इसके आगे नतमस्तक है;

पूर्वजों के तर्पण से लेकर 

पाप मुक्ति

व मोक्ष प्रदान करने वाली

माँ गङ्गा सौभाग्य का सूचक हैं।


भारतीय ऋषि-महर्षियों को

गङ्गा के वैज्ञानिक महत्व

एवं अद्‌भुत प्राकृतिक संरचना का

ज्ञान था,

तभी तो शास्त्र-पुराणों में

गङ्गा भारतीय संस्कृति का प्राण है।


गङ्गा माँ भारत की प्राण हैं। 

वह जीवनदायिनी

और मोक्षप्रदायिनी हैं

उनके दर्शन मात्र से

पाप और शोक नष्ट हो जाते हैं।


गङ्गा एक पवित्र नदी मात्र नहीं,

बल्कि सभ्यता की अधिष्ठात्री हैं,

जो आध्यात्मिक महत्व के कारण

हमारी संस्कृति में आदर के 

सर्वोच्च सोपान पर हैं।


गङ्गा माँ के आँचल में 

हर भारतीय शिशु की भाँति 

अठखेलियाँ कर आशीर्वाद की

आश्वस्ति पाता है,

जिनके तट पर बैठ

वह दुख-सुख सब कह पाता है,

जिनके जल से अभिषेक कर 

वह नई ऊर्जा से भर जाता है;

गंग सकल मुद् मङ्गल मूला।

सब सुख करनि हरनि सब सूला।।

  (गोस्वामी तुलसीदास)


भारत के लिए माँ गङ्गा

किसी वरदान से कम नहीं हैं,

वह सतयुग से लेकर आज तक

करोड़ों श्रद्धालुओं को

शांति,मुक्ति,भक्ति

व आनंद प्रदान कर रही हैं। 


गङ्गा केवल एक नदी नहीं, 

बल्कि माँ हैं,

वह केवल जल का ही नहीं, 

जीवन का भी स्रोत हैं

जो हमें जीवन देती है। 


माँ गङ्गा ने हमारी आत्मा को 

अपने आस्था रूपी जल से 

हमेशा पवित्र किया है,

जो भारतीय संस्कृति की 

संरक्षक व संवाहक भी हैं।


वैशाख शुक्ल सप्तमी को 

पतित पावनी,

जीवन व जीविका दायिनी

माँ गङ्गा धरती पर अवतरण हेतु

तीब्र वेग से आगे बढ़ीं,

तो भगवान शिव ने उन्हें

पृथ्वी रक्षणार्थ

अपनी जटाओं में

धारण कर लिया;

सूर्यवंशी राजा सगर के पुत्रों का

उद्धार करने के लिए

ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को

माँ गङ्गा शिव जटा से मुक्त हो 

धरती पर अवतरित हुईं;

तब से लेकर आज तक

वह इस पुण्यधरा भारत भूमि का

उद्धार करती आ रही हैं।


सतयुग में सूर्यवंश की 

आस्था ही थी

कि माँ गङ्गा

पूर्वजों का उद्धार करेंगी

जिसे भगीरथ की घोर तपस्या ने

चरितार्थ कर दिया।


भारत की पहचान माँ गङ्गा से है,

जो युगों-युगों से

मानवीय चेतना का

संचार कर रही हैं;

भारत की शुद्धता,शुचिता,आस्था

व पवित्रता लिए

निरंतर प्रवाहित हो रही हैं। 


आज भी गङ्गा घाट पर 

जीते-जी एक बार डुबकी,

एक आचमन की आकाँक्षा

हर श्रद्धालु की होती है

अन्यथा गङ्गा तट पर

कम से कम अंतिम संस्कार की

कामना लेकर

जग से विदा होते हैं;

वह भी न हो सके

तो अंतिम समय में

दो बूंद गङ्गाजल की आस

प्राणों के उद्धार के लिए होती है। 


विदेशी धरती पर

प्राण त्यागने वालों की अस्थियाँ

गङ्गा में प्रवाहित होने की 

प्रतीक्षा में रहती हैं;

अद्भुत आस्था है!


गङ्गा हमारे जीवन में

ऐसी घुली हुई हैं

कि जीवन के हर महत्वपूर्ण क्षण में

उनका आशीर्वाद लेना 

सौभाग्य कारक है।


गङ्गा में स्नान

अपने आप में पर्व बन जाता है,

इसीलिए प्रत्येक शुभ तिथि में

गङ्गा स्नान शुभ है।


गङ्गा में मज्जन 

मन,कर्म और वाणी से जुड़े

दस तरह के पापों को

हरने या नष्ट करने की क्षमता को

अभिव्यक्त करता है।


सतयुग से लेकर कलयुग तक

गंगा के प्रति श्रद्धालुओं की

जो निरन्तर आस्था है,

वह है गङ्गा का प्रताप,

गङ्गा की पवित्रता का प्रताप, 

उसके मौन का प्रताप, 

उसकी शांति का प्रताप

और उसकी मुक्ति की

शक्ति का प्रताप।


हमारी नदियाँ स्वच्छ बहती रहें,

सबका भरण पोषण करती रहें,

कोई भी पीछे न छूट जाए,

यह हमारा दायित्व है;


 ✍️मनोज श्रीवास्तव

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