लघु कथा :तू भी बदल फलक.....

 तू भी बदल फलक....?


"साहब मेरा चेक मिलना था।कागज परसों ही डिस्पैच सेक्शन में जमा कर गया था।देख लें वह आप तक आ गया है?"अधेड़ ने बड़ी विनम्रता के साथ मुझसे कहा।

 

मैंने डिस्पैच की रिसिविंग देखते हुए रजिस्टर खोला और शालीनता से जवाब देने लगा-"आपके पेपर कल ही आ गए थे और कल ही पेमेण्ट वाउचर भी बन गया था।आज सुपरवाइजर ने उसे चेक कर ए. ओ.साहब के पास,पास होने को भेज दिया है।"


"साहब अब हमें क्या करना है?"



"आपको क्या करना है?वाउचर आज पास होकर एकाउंट सेक्शन में पहुँच जाएगा।कल चेक बनकर अन्य जांच के बाद दो अधिकारियों के साइन होते हुए परसों आपके पते पर डिस्पैच हो जाएगा।हफ्ते के अंत में आपको चेक डाक से मिल जाना चाहिए।


"मेरा मतलब है मुझे किससे मिलना होगा?"


"जब काम हो रहा है तो मिलने की क्या जरूरत है?"मैं उसी रौ में कह गया।


इस दौरान वह बराबर मेरे चेहरे पर नजर गड़ाए हुए मुझे पढ़ने की कोशिश करता रहा।पर मेरे निर्विकार भाव को पाकर वह बोल पड़ा-"साहब बुरा ना माने तो एक बात कहें?"


"हाँ हाँ! बोलिए।"


"साहब!मैं प्राइमरी स्कूल में मास्टर हूँ।खेती पुश्तैनी धंधा है।पचपन की उमर हमने पार कर ली है।अनेक विभाग के सैकड़ों सरकारी दफ्तरों में मेरा काम पड़ा है।..... हर जगह फाइल ऐसे नहीं बढ़ती।जिस पर आप कहते हैं कि मेरी फाइल तीन सीट आगे बढ़ चुकी है, वह भी मेरे बिना आए,तो मुझे इस पर विश्वास नहीं हो रहा....।


मैं हतप्रभ उन्हें देख रहा था। समझ में नहीं आ रहा था कि उत्तर क्या देना चाहिए। पर उनका अविश्वास चेहरे पर साफ झलक रहा था।.... कुछ क्षण बाद संयत होने पर मुझे लगा कि मानो वह अविश्वास भरी नजरें मुझसे कह रही हैं-"तूभी बदल फलक, जमाना बदल रहा है।"


 पर मैं आपसे पूछता हूँ-"क्या मुझे बदलना चाहिए?"

प्रस्तुति

मनोज श्रीवास्तव

(2009 में व्यवसायगत अनुभव पर आधारित)

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