कहानी : काउण्टर - तीन

                                           कहानी : काउण्टर - तीन


"आप तो बहुत ही अनुशासन वाले व हिसाब-किताब रखने वाले अध्यापक हैं तो कैसे आपकी पॉलिसी कालातीत (लैप्स) हो गई?"मैंने अपने कार्यालय आए पूर्व परिचित शिक्षक से प्रश्न किया जो उक्त कार्य हेतु मेरे समक्ष खड़े थे।


"बस सर हो गया।"कह कर उन्होंने बात टाल दी।मैंने भी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करवाईं।उन्होंने काउण्टर पर पैसा जमा किया फिर मेरे पास आकर बैठ गए।संयोगवश उस समय मेरे पास कोई ग्राहक नहीं था।औपचारिक वार्ता के बाद उन्होंने स्वयं बताना शुरू किया-

लगभग सात माह पूर्व (जब उनकी पॉलिसी चालू अवस्था में थी)उन्होंने अपने भतीजे को, जो दिल्ली की किसी फर्म में एकाउण्टेण्ट था और छुट्टियाँ बिताने गाँव आया था,को पैसा जमा करने के लिए भेजा था।काउण्टर पर भीड़ होने के कारण युवक लाइन में लग गया।काउण्टर तक पहुँचने में घंटों लग जाने का एहसास उसकी हिम्मत को चुनौती दे रहे थे।पर मरता क्या न करता।


 ५ -७ मिनट बीते होंगे कि एक समवयी युवक उसके पास आया और बड़े ही अदा से नमस्कार कर उसने उससे हाथ मिलाया मानो वह उसका पूर्व परिचित हो। उसने उसका हालचाल पूँछा।लाइन में लगने का कारण जाना और तत्काल बोल पड़ा-"अरे!फिर लाइन में क्यों लगे हो?कैशियर शुक्ला जी मेरे मित्र हैं।लाओ मैं पीछे से काउण्टर में जाकर उनके पास पैसा जमा करके आता हूँ।"


युवक इस युवक को,जो इतना करीबी प्रतीत हो रहा था और हितैषी लग रहा था को पहचान न पाने के कारण स्वयं ग्लानि में डूबा उसका परिचय याद कर रहा था।वह कोई जवाब न दे पाया और यंत्र चालित अपने हाथ का पैसा व चालान उसे सौंप बैठा।और युवक के पीछे-पीछे काउण्टर के पीछे की ओर चल दिया।कैश सेक्शन के पूर्व लगे गेट पर उसने उसे वहीं रोकते हुए कहा "आप रुकिए मैं अंदर जमा करके आता हूँ।"


उसने पिछला दरवाजा खोला।अंदर बैठे गार्ड को नमस्कार किया और कुछ बात करने लगा।तब तक स्प्रिंग लगा दरवाजा बंद हो चुका था।बाहर खड़ा युवक आगे देख ना पाया।पर उसका विश्वास जम गया। निश्चिंतता के बाद वह वाह्य जगत में लौट आया।उसका ध्यान विविध सीटों पर काम करवाते ग्राहकों की ओर उठ गया।कोई चिरौरी कर रहा था,कोई हड़का रहा था और कोई आश्वासन दे रहा था।लगभग पन्द्रह मिनट के बाद वह अपने यथार्थ में लौटा।उसकी नजर गेट पर गई।युवक अभी निकला प्रतीत नहीं होता था।उसने १०-१५ मिनट और गुजार दिए।सोचने लगा- इतनी देर ही लगनी थी तो काउण्टर में लाइन में लगना ही बेहतर था। वह कोस ही रहा था कि उसे ध्यान आया कि शुरू के लगभग 10 मिनट तो उसने उस गेट पर ध्यान भी नहीं दिया था,वह तो बस इधर-उधर की तफरी ले रहा था।कहीं उसी बीच वह युवक पैसे लेकर उसकी नजर बचाकर....।


नहीं!ऐसा नहीं हो सकता। उसका बात करने का तरीका...., उसकी आत्मीयता,उसका आत्मविश्वास के साथ कैश सेक्शन के पिछले दरवाजे से घुसना;उस पर अविश्वास करने की रंचमात्र भी गुंजाइश नहीं पैदा कर रहे थे। फिर भी मन ना माना।


 कैश सेक्शन का पिछला दरवाजा खोला। पास बैठे गार्ड से पूछा कि "अभी कुछ देर पहले शुक्ला जी कैशियर के पास जो सज्जन आए थे वे बाहर आए या नहीं?" गार्ड ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा।अपनी याददाश्त पर जोर डालते हुए बोला-"पहली बात तो यह कि यहाँ संयोगवश कोई भी शुक्ला जी कैशियर नहीं हैं। दूसरी बात,जो सज्जन कुछ देर पहले उनके बारे में पूछते हुए घुस आए थे मेरे टोंकने के बाद एक-दो मिनट की हील हुज्जत बाद वापस चले गए थे।"


अब उसकी समझ में आया कि शुक्ला जी का नाम लेना एक बहाना था।गेट से बोल्डली घुसना एक अभिनय था व गेटमैन से बात करने का उपक्रम केवल ध्यान हटाने का तरीका।वह दिनदहाड़े ठगा जा चुका था।वह पूरे ऑफिस में दौड़ा पर सब व्यर्थ।घर लौटने के सिवा चारा न था।


घर पहुँचने पर उसने बातें बताईं। किसी ने उसे कुछ भी कठोर नहीं कहा।सबने भूल जाने की सलाह दी।पर यह बात उस को लग गई। वह दिन भर गुमसुम रहा। रात में भी ठीक से भोजन न कर सका।रात में सोते से चिल्ला पड़ा-"वह मुझको ठग गया..... वह मुझको ठग गया।" घर के लोग इकट्ठा हो गए।वह चारपाई पर बैठा बड़बड़ा रहा था - 'मैं पढ़ा लिखा हूँ! दिल्ली जैसे शहर में रहता हूँ! दुनिया मैंने देखी है!...यह डींग मैं घर व गाँव में हाँकता हूँ।पर वह मुझे ठग  गया....।" लोग सांत्वना देते रहे पर वह आपे में नहीं था।जैसे-तैसे रात कटी।


सुबह उसे शहर लाया गया। मनोचिकित्सक डॉक्टर वर्मा को दिखाया गया।घटना बताई नहीं।उन्होंने इंजेक्शन दिए दवाइयाँ दीं।कम से कम तीन माह आराम करने की सलाह दी। घटना का फिर कभी जिक्र ना करने की पूरे परिवार को हिदायत दी।उनके अनुसार यह एक मानसिक आघात था।बच्चे का भावुक होना इसका कारण था। धीरे-धीरे वह सामान्य हो गया।दवाएं बंद हो गईं।अब छह माह बाद अपने काम पर वह वापस गया है।उसके बाद ही वे यह पैसा जमा करने आए हैं।


मनोज श्रीवास्तव

(वर्ष २००७ में मेरे सम्मुख घटी एक घटना)

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