लचर सरकार:एक समीक्षा

 लचर सरकार:एक समीक्षा


देश सत्ता का दावा करने वाले मौजूदा हर दल को आजमा चुका है।इनके आपस के लगभग प्रत्येक कार्य की परिस्थिति जन्य तुलना स्वाभाविक है।नोटबन्दी,जी यस टी,सी ए ए,अनुच्छेद 370,कृषि सुधार कानून,श्रम नीति सुधार कानून जैसे मुद्दों पर वर्तमान सरकार ने जिस तरह दृढ़तापूर्वक निर्णय लिए,कुछ निर्णयों में इसकी लचर नीतियों ने पूर्व व वर्तमान दावेदार सरकार की याद दिला दी ।उनमें से वर्तमान में घट रही कुछ घटनाओं व उस पर लिए जा रहे निर्णयों की पूर्व सरकारों द्वारा उन्हीं परिस्थितियों में लिए जा सकने वाले निर्णयों की बानगी प्रस्तुत है-


1- 2 मई से बंगाल में भाजपाइयों से हिंसा,लूट,रेप,हत्या;मुण्डन व क्षमा से शुद्धि के साथ TMC में शामिल करने की वारदातें हो रही हैं। भाजपा अपने वोटरों की रक्षामें असमर्थ है।

यदि केंद्र की सत्ता में व प्रताडितों में काँग्रेसी होते तो क्या TMC सरकार बची होती? काँग्रेस द्वाराअपने कार्यकाल में संविधान प्रदत्त अनुच्छेद 356 का प्रयोग इसका उदाहरण है।


2-कोरोना संकट के समय अन्य जरूरतमंद राज्यों के लोगों के जान की कीमत पर आवश्यकता से कई गुना ऑक्सीजन की गुहार सुप्रीम कोर्ट तक करने वाले केजरीवाल,कोर्ट द्वारा निर्धारित  ऑडिट में लाखों की जान का दुश्मन सिद्ध हो जाने के बाद भी क्या आज बिना मुकदमा गद्दी पर होते यदि केंद्र में काँग्रेस सत्तासीन होती? 


3- सोशल मीडिया के भारतीय कानून को मानने से इंकार करने वाले ट्विटर ने दादागिरी दिखाते हुए संघ परिवार के प्रमुख लोगों सहित उपराष्ट्रपति व सूचना प्रसारण मंत्री तक के एकाउंट विवादित कहकर बंद कर दिए और जब खोले भी ,चेतावनी देकर!

यदि केंद्र में काँग्रेस होती और उसके नेताओं के साथ ऐसा व्यवहार होता तो क्या भारत में आज ट्विटर का हठी अस्तित्व होता?


4- भारत के नक्शे से छेड़छाड़ कर दर्शाना देश की संप्रभुता को चुनौती है और ट्विटर बार-बार ऐसा करके शासन को चिढ़ा रहा है। सरकार अभिव्यक्ति की आजादी के नाम से उठने वाली नपुंसक आवाज के खौफ से कार्यवाही से बच रही है। यदि भारत में काँग्रेस की सरकार होती तो क्या ट्विटर बेखौफ बिना कार्यवाही इतने दिन बच पाता?


ये तो कुछ उदाहरण भर हैं।अनेक विषय और भी हैं,मैं समझता हूँ सरकार को इन जैसे तथ्यो  को संज्ञान में लेकर उनके प्रति न्यायवादी दृष्टिकोण के साथ बिना राजनीतिक नफा-नुकसान की चिंता किए कदम उठाना चाहिए।यह समय व राष्ट्रहित की माँग है।


प्रस्तुति

मनोज श्रीवास्तव

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