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Showing posts from November, 2021

कानून वापसी के राजनीतिक निहितार्थ

  कानून वापसी के राजनीतिक निहितार्थ  १ - मोदी के वोटर मोदी को दृढ़ संकल्पित व्यक्ति के रूप में मानते रहे अतः वह कतई कानून वापसी के पक्ष में नहीं थे,जबकि कानून वापसी की माँग करने वाले उनके वोटर कभी नहीं थे इसलिए मोदी ने अपने समर्थकों का भरोसा डगमगा दिया है।वे उनको कैसे विश्वास दिला पाएँगे यह तो समय ही बताएगा। २ -कानून वापसी की मांग की आड़ में उपद्रवी तत्व, विदेशी ताकतें और उनके घरेलू दलाल जिस तरह से देश तोड़ने की साजिशें रच रहे थे,लोगों को भड़का रहे थे उस पर रोक लग गई है। ३ -एक अनुमान तो यह भी है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सरकार की चिंता बढ़ रही थी। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रदर्शनकारियों के बीच खालिस्तानी और पाकिस्तानी तत्वों की बढ़ती पैठ को लेकर लगातार आगाह करते रहे थे उनका मानना था कि पंजाब में तीन दशक पहले जैसी अशांति एवं अस्थिरता का खतरा बढ़ रहा था। ४ -यह रोचक है कि भारत के अंदर नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों के कटु आलोचक रहे अर्थशास्त्रियों ने भले कोई सवाल नहीं उठाए पर स्थानीय राजनीति से प्रभावित कनाडा के पीएम जस्टिन टुडो और ब्रिटेन व अमेरिका के कुछ सांस

मणिपुर के शहीद

  मणिपुर के शहीद मणिपुर के सिंघट इलाके में नागा पीपुल्स फ्रंट के आतंकी हमले में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के रहने वाले असम राइफल्स कमांडिंग अफसर कर्नल बिप्लव त्रिपाठी के साथ 5 जवान शहीद हो गए।हमले के दौरान कर्नल की पत्नी तनुजा व 5 साल का बेटा अबीर भी साथ थे जो मारे गए।  इस आतंकी हमले में हँसता-खेलता एक परिवार मिट गया। सैनिक तो होते ही मरने के लिए हैं।वे इसी की तनख्वाह लेते हैं। यही तो कहते हैं वामपंथी आंदोलनजीवी, मानवाधिकार वादी बुद्धिजीवी व अर्बन नक्सली!क्या वे यह बता सकते हैं कि विप्लव की बीवी व मासूम बच्चों को भी उनकी वह सरकार जिससे वे संघर्ष कर रहे हैं या आतंकियों के आका क्या दे रहे थे मरने के लिए? जिस स्त्री ने अपने जांबाज़ पति के साथ जीवन गुजारने की मधुरिम कल्पनाएं की हों,जिसने उसे सुख दुख में आजीवन साथ निभाने का सपना देखा हो,जिसने महकती बगिया बसाने का ताना-बाना बुना हो,उसके जीवन को आतंकियों द्वारा क्षण भर में मसल देना क्या उन साम्यवादी नक्सलियों के तथाकथित समान न्याय व्यवस्था कायम करने के उद्देश्य की प्रतिपूर्ति कर पाया?प्रश्न है। जिस बालक ने अभी तक बचपन के खिलौने थामने शुरू किए

कानून वापसी का किसानों पर प्रभाव

कृषि सुधार कानूनों की वापसी का किसानों पर प्रभाव प्रधानमंत्री ने तीन कृषि सुधार कानून वापस ले लिए। कोई मान रहा है अहंकार हार गया;कोई कह रहा है लोकतंत्र विजयी हुआ है;कोई सरकार की हार व आंदोलन की जीत के रूप में इसे रेखांकित कर रहा है;कोई इसे किसानों की जीत बता रहा है पर सच्चाई यही है कि "कृषि सुधार" हार गए।आइए चर्चा करते हैं उन तथ्यों की जो इस कानून के जरिए किसानों को मिलने वाले थे और वह उसे अब खो चुके हैं। १- कृषि उत्पादों के व्यापार व जिंसों की अंतरराज्यीय आवाजाही पर पहले वाले प्रावधान पुनः लागू हो जाएंगे।अब पुनः किसान अपनी उपज की एक राज्य से दूसरे राज्य में बिना मंडी शुल्क चुकता किए नहीं ले जा सकते हैं इससे उपज की लागत बढ़ेगी । २- स्थानीय मंडियों के कानून के मकड़जाल और आढ़तियों का हस्तक्षेप जारी रहेगा। किसानों को अपनी निर्धारित व अधिसूचित मंडी से ही उपज को बेचने की अनुमति होगी।वह अपनी उपज ना तो अपनी मंडी के दायरे से बाहर भेज सकता है और ना ही कोई दूसरा खरीदार उसके खेत पर उपज की सीधी खरीद कर सकता है। इसके लिए उसे अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करना होगा। ३- कृषि प्रसंस्करण उद्योग को

छठ ! प्रकृति-पर्व

 छठ! पूजा का पर्व। ईश्वर और आस्था के बीच संवाद का व्रत। न कोई ग्रँथ न कोई मन्त्र बस श्रध्दा और विश्वास। न मन्दिर की जरूरत न पण्डित की और ना ही विग्रह की। जहाँ समूह ही पण्डित समूह ही यजमान। मूर्त शक्ति नहीं वरन् जीवन दाताओं की आराधना। निसर्ग के प्रति सामूहिक कृतज्ञता का ज्ञापन यानी पूर्वजों का पूजा कार्य। भारतीय जीवनदृष्टि की सच्ची अभिव्यक्ति। पूर्णरूपेण पर्यावरण मित्र का पर्व।           ---मनोज श्रीवास्तव