मणिपुर के शहीद

 मणिपुर के शहीद


मणिपुर के सिंघट इलाके में नागा पीपुल्स फ्रंट के आतंकी हमले में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के रहने वाले असम राइफल्स कमांडिंग अफसर कर्नल बिप्लव त्रिपाठी के साथ 5 जवान शहीद हो गए।हमले के दौरान कर्नल की पत्नी तनुजा व 5 साल का बेटा अबीर भी साथ थे जो मारे गए।


 इस आतंकी हमले में हँसता-खेलता एक परिवार मिट गया।


सैनिक तो होते ही मरने के लिए हैं।वे इसी की तनख्वाह लेते हैं। यही तो कहते हैं वामपंथी आंदोलनजीवी, मानवाधिकार वादी बुद्धिजीवी व अर्बन नक्सली!क्या वे यह बता सकते हैं कि विप्लव की बीवी व मासूम बच्चों को भी उनकी वह सरकार जिससे वे संघर्ष कर रहे हैं या आतंकियों के आका क्या दे रहे थे मरने के लिए?


जिस स्त्री ने अपने जांबाज़ पति के साथ जीवन गुजारने की मधुरिम कल्पनाएं की हों,जिसने उसे सुख दुख में आजीवन साथ निभाने का सपना देखा हो,जिसने महकती बगिया बसाने का ताना-बाना बुना हो,उसके जीवन को आतंकियों द्वारा क्षण भर में मसल देना क्या उन साम्यवादी नक्सलियों के तथाकथित समान न्याय व्यवस्था कायम करने के उद्देश्य की प्रतिपूर्ति कर पाया?प्रश्न है।


जिस बालक ने अभी तक बचपन के खिलौने थामने शुरू किए थे, उनके आनंद  का रसास्वादन मात्र करना शुरू किया था, दुनिया से संघर्ष में जिसकी तालीम की शुरुआत भी अभी नहीं हुई थी उस मासूम की बगिया को उजाड़ कर नक्सलियों ने किस दमन के विरुद्ध अपनी सहस्त्र क्रांति का ऐलान किया है?


 नक्सलवाद की आड़ में की गई शुद्ध हिंसा को सैद्धांतिक न्याय का जामा पहनाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी, अर्बन नक्सली व बामपंथी मानवता-समानता-न्याय की डींगे हाँकते रहते हैं पर वे आज चुप हैं। उनकी नीतियां गाँधी की उसी अहिंसा जैसी हैं जो आमरण अनशन की धमकी देकर अपनी जिद मनवाते थे; जो हिंसा से कहीं अधिक भयानक, त्रासदायक,तानाशाहीपूर्ण व फासिस्टवादी थीं।उनकी यह चुप्पी नराधम की श्रेणी का प्रमाण है।

मनोज श्रीवास्तव

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