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Showing posts from March, 2022

बामपंथी भगत सिंह :सुनियोजित षड्यंत्र

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  बामपंथी भगत सिंह :सुनियोजित षड्यंत्र        ~मनोज श्रीवास्तव भारत के अग्रगण्य क्रांतिकारी व बुद्धिजीवी सरदार भगत सिंह को एक सुनियोजित साजिश के तहत मार्क्सवादी खाँचे में बाँधने का कुत्सित व झूठा प्रयास वामपंथियों ने किया। पर भगत सिंह वस्तुतः सनातन धर्माग्रही थे। राहुल फाउंडेशन लखनऊ के मई 2019 में पुनर्मुद्रित "भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज"में इसके तथ्यात्मक संदर्भ आबद्ध किए गए हैं।इसके अनुसार भगत सिंह सावरकर को आदर्श क्रांतिकारी के रूप में मानते थे।कलकत्ता से प्रकाशित साप्ताहिक "मतवाला"के 15 और 29 नवंबर 1924 के अंक के एक आलेख "विश्वप्रेम" में भगत सिंह ने बलवंत सिंह के छद्म नाम से लिखा-"विश्वप्रेमी वह वीर है जिसे भीषण विप्लववादी, कट्टर अराजकतावादी कहने में हम तनिक भी लज्जा नहीं समझते-वही वीर सावरकर।विश्वप्रेम की तरंग में आकर घास पर चलते-चलते रुक जाते कि कोमल घास पैरों तले मसली जाएगी।"इन दिनों सावरकर रत्नागिरी में नजरबंद थे। बलिदानी भगत सिंह ने "किरती" नामक प्रकाशन में मार्च 1928 से लेकर अक्टूबर 1928 तक "आजादी

वह बालक : ऐतिहासिक बाल कथा

  वह बालक : ऐतिहासिक बाल कथा ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी का उत्तरार्ध काल।उत्तर भारत के महानतम साम्राज्य मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में मगध दरबार।महाराज घनानंद अपने सभासदों के साथ बैठे हुए थे।दरबार में सन्नाटा छाया हुआ था। लगता था दरबार किसी अत्यंत महत्वपूर्ण समस्या के समाधान में निमग्न था। यद्यपि इतने विशाल साम्राज्य के राजकाज में नित-नवीन समस्याओं का सर उठाना कोई नई बात ना थी।वह भी विद्वत-जनों की मगध सभा के सामने कोई भी समस्या अपना सर उठाते ही दमित कर दी जाती थी।पर आज की दशा कुछ और ही थी क्योंकि महाराज की उच्च ग्रीवा अपने सभासदों में से प्रत्येक के ऊपर अपनी दृष्टि जमाते हुए आगे बढ़ती जा रही थी मानो वह प्रत्येक की क्षमता को नजरों से तौल रहे हों।सम्राट से नजर मिलते ही प्रत्येक अपने नेत्र नीचे कर लेता था।दरबार के बीच में एक विदेशी सर उन्नत किए खड़ा था मानो वह हौले- हौले पूरे दरबार को चुनौती दे रहा हो।उसके साथ तीन अनुचर खड़े थे जिनमें से प्रत्येक के हाथ में एक-एक थाल था।पहले थाल में दहकते हुए अंगारे थे,दूसरे में सरसों के दानों का ढेर था और तीसरे में एक मीठा फल था।  महाराज ने अंततः अपनी दृष्ट

अयोध्या

                       अयोध्या "श्री अयोध्या भारत की प्राचीनतम नगरी में से एक है।" यह एक आम विचार है। पर इसके इतिहास से आमजन आज भी अपरिचित है।वस्तुतः अयोध्या केवल नगरी ही नहीं भारतीयता की भावभूमि है जो राजसत्ता के प्रति वैराग्य का दृष्टिकोण देती है।अयोध्या मर्यादा, शील,त्याग-तप,मन्त्र-जप और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की श्रद्धेय धरती है।अयोध्या एक विचार है-एक काव्य है।अयोध्या को "रामनीति" बसाती है,राजनीति उजाड़ती है।    अयोध्या के इसी प्रारूप से जनमानस को परिचित कराने के लिए शासन स्तर पर प्रयास जारी है।अयोध्या में प्रवेश करते ही गुरुकुल महाविद्यालय के प्रवेश द्वार के पास लगाए गए पट पर इसी अयोध्या की प्राचीनता को प्रमाणित करते तथ्य अंकित हैं- "भारत की गौरवशाली अध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परम्परा का प्रतिनिधित्व करने वाली अयोध्या प्राचीन काल से ही धर्म एवं संस्कृति की परमपावन नगरी के रूप में सम्पूर्ण विश्व में विख्यात रही है। मान्यतानुसार प्राचीन अयोध्या का निर्माण महर्षि वशिष्ठ की देख-रेख में विश्वकर्मा जी की सहायता से मनु द्वारा किया गया था। प्राचीन उत्तर कोशल प्रान्त

शिव

                         शिव शिव सत्य है शिव अनंत हैं। शिव अनादि हैं शिव भगवन्त हैं।  शिव संगीत-नृत्य अधिष्ठाता हैं, वे विविध कलाओं के आचार्य हैं। शिव सृष्टि के कल्याणकारक,  नवसृजन निमित्त सृष्टि के संहारक हैं। मानव को महान बनाने विषपायी बन जाते हैं, अंतः करण बचाने हेतु विष कंठ में धर लेते हैं। वे हैं श्रद्धा विश्वास के मूर्तिमान स्वरूप, आत्मकल्याण और लोककल्याण के संभव स्वरूप! मनोज श्रीवास्तव @मानव            ०१.०३.२०२२,शिवरात्रि