बौद्ध दर्शन

 बौद्ध दर्शन 


संपूर्ण जीवन दु:खमय है

जन्म से लेकर मृत्यु तक।


प्राणि-इच्छा की अपूर्णता

पुनर्जन्म का कारण होता है

जिससे मृत्यु के बाद

पुनर्जन्म होता है 

अतः 

मृत्यु,दु:ख का अंत नहीं 

वरन् नए दु:ख का आरंभ है।


मानव हेतु प्रशस्त

दु:ख से मुक्ति का मार्ग 

मध्यम मार्ग है।


प्रतिक्षण परिवर्तनशील है

अतः सृष्टि में जो है 

वह सब क्षणिक है।


प्रत्येक कार्य का 

कारण अवश्य होता है,

यही प्रतीत्यसमुत्पाद है 

यही द्वितीय आर्य सत्य है।


दु:ख का मूलभूत कारण अविद्या है 

जिससे उपजता है संस्कार

जो हैं पूर्व में किए गए कर्मों की प्रवृत्तियाँ।

संस्कार से विज्ञान 

विज्ञान से नामरूप 

नामरूप से षडायतन 

षडायतन से स्पर्श 

स्पर्श से वेदना 

वेदना से तृष्णा 

तृष्णा से उपादान 

उपादान से भव 

भव से जाति 

जाति या जन्म से जरा-मरण का दु:ख 

जो अवश्य भोगना पड़ता है;

दु:ख के कारणता का यह सिद्धांत

द्वादश निदानचक्र कहलाता है।


दु:खों के मूल कारण

अविद्या के निदान से 

जीवन के दु:खों का शमन संभव है 

दु:खों का निरोध ही निर्वाण है;

दु:ख-निरोध ही तृतीय आर्य सत्य है ।


सम्यक दृष्टि 

सम्यक संकल्प 

सम्यक वाक्

सम्यक कर्मान्त

सम्यक अजीव 

सम्यक व्यायाम 

सम्यक स्मृति 

सम्यक समाधि

यह दु:ख निरोध का अष्टांग मार्ग है 

यही चतुर्थ आर्य सत्य है।


शील समाधि और प्रज्ञा की त्रिशिक्षा 

निर्वाण प्राप्ति के लिए अपेक्षित है 

गौतम का अनात्मवाद और अनीश्वरवाद

इसी से सेवित है।


मनोज श्रीवास्तव

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