संस्थागत भ्रष्टाचार

संस्थागत भ्रष्टाचार

दैनिक जागरण समाचार पत्र के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित सुरेंद्र किशोर के लेख "खत्म हुआ भ्रष्टाचार की अनदेखी का दौर"(दिनाँक 02/06/2022) में बताए गए उद्धरणों का संयोजन आँख खोलने वाला है।जीप घोटाले में दोषी सिद्ध वीके कृष्ण मेनन की मंत्रिमंडल में पुन:वापसी के बाद नेहरू की कलाबाजी वाली भाषण बाजी "भ्रष्टाचारियों को लैंप पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए" ने भ्रष्टाचारियों के लिए सिद्ध कर दिया कि "भ्रष्टाचार सिर्फ मुनाफे का सौदा है"।इसके भी पूर्व महात्मा गाँधी द्वारा बिहार के भ्रष्टाचारी मंत्री को हटाने की सलाह को नकारना, आंध्र की चंदा वसूली के भ्रष्टाचारी को पटेल द्वारा दोषी बताए जाने के बाद भी मुख्यमंत्री बनाना ऐसी घटनाएं हैं जो संस्थागत घोटाले का पोषण करने का प्रमाण है।पंजाब सिंचाई परियोजना में की गई कमीशनबाजी में प्रताप सिंह कैरों की पत्नी व बच्चों ने पैसा बनाया है पर कैरों इसके जिम्मेदार नहीं जैसे अंधेरगर्दी वाले नैरेटिव, बिहार में अय्यर आयोग द्वारा भ्रष्टाचार के दोषी ठहराए गए छह नेताओं को सीना ठोंक कर दंडमुक्त करने का तुगलकी फरमान, इंदिराजी की घोषणा- "भ्रष्टाचार तो दुनिया भर में है" राजीव गाँधी की "साफगोई"कि 'पचासी प्रतिशत बिचौलिए खाते हैं', भ्रष्टाचार को संवैधानिक जामा पहनाता गया।ऐसे में एक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री का विचार-"फर्स्ट फैमिली को कभी टच नहीं किया जाना चाहिए"वोहरा कमेटी की इन सिफारिशों को पुख्ता करती है कि देश में अपराधियों नेताओं और नौकरशाहों का प्रभावशाली गठजोड़ सबसे बड़ी चुनौती है। इनसे निपटना देश व समाज के लिए वर्तमान सरकार का सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए।

~मनोज श्रीवास्तव

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