योग: कर्मसु कौशलम्

 योग: कर्मसु कौशलम्

योग- एक परिचय 

योग 

भारतीय प्राच्य विद्या,

भारतीय संस्कृति का अंश;

एक पूर्ण शास्त्र,

विश्व मानव की विरासत,

चित्त वृत्तियों का निरोध,

संसार सागर से पार होने की 

युक्ति वाली साधना।


सनातन परंपरा में रचा-बसा  गुँथा

जीवन शैली का अनिवार्य भाग ।

मनोवांछित,इच्छित मार्ग पर

अग्रसर होने का 

एकमात्र साधन।


सिद्धि समाधान

और सम्पूर्णता के लिए

सुझाए मार्गों में

प्रमुख मार्ग है योग।


धर्म और विद्या 

दोनों का रक्षक है योग।


साधना की चरमावस्था में

जब परमात्मा से एकाकार हो,

आत्मा उसका साक्षात्कार करती है,

आत्मा परमात्मा का यही मिलन 

योग है।

(समाधि अर्थ में)


मन एवं आत्मा 

तथा आत्मा और परमात्मा,

इनका सँयोग योग है।

(अग्निपुराण के अनुसार)


प्रकृति और पुरुष में भेद है

परंतु पुरुष का 

आत्मस्वरूप में स्थित हो जाना 

योग है।

(सांख्य दर्शन में)


जब इंद्रियाँ मन के साथ

और मन अविचल बुद्धि के साथ 

स्थिर हो जाता है 

यही अवस्था योग की है।

(कठोपनिषद से)


मनुष्य एकाग्र चित्त होकर

निष्काम भाव से 

कर्म करते हुए 

योग को सिद्ध करता है 

यही है योग: कर्मसु कौशलम्।

(श्रीमद्भगवत गीता)


चित्तवृत्तियों के 

निरोध को 

योग कहते हैं 

(योगसूत्र प्रणेता पतंजलि)

योग और आध्यात्म

आध्यात्मिक यात्रा 

हमारे स्वभाव 

और निजता की यात्रा है।

अपने अस्तित्व-सत्ता निजता 

और संपूर्ण स्वरूप को

समझने का नाम 

आध्यात्म है।

आत्मान्वेषण 

इस यात्रा का पाथेय है।

शाश्वत आह्लाद-आत्मान्वेषण 

यानी जीवन संपूर्णता के सूत्र मार्ग 

जिनमें आत्मकल्याण के साथ 

वृहत्तर लोकोपकारी वृत्तियाँ शामिल हैं,

वे परम मंगलकारी हैं।


योग दिव्य दैवीय संपदा का

अभिन्न अंग है,

संसार के योग-क्षेम निमित्त

भारतीय संस्कृति का 

अमूर्त उपहार है,

शरीर पर नियंत्रण,

मन पर अनुशासन,

समग्र आत्मिक-शक्तियों के

एक साध्य में संयोजन के अनंतर 

उपार्जित दिव्यता-एकाग्रता 

और परमानुभूति ही 

योग का परम लक्ष्य है।


यौगिक क्रियाएँ

मानवीय चेतना के आरोहण,

उन्नयन-उत्कर्ष 

और आध्यात्मिक जागरण में 

सहायक है।

वस्तुतः योग ही

भारतीय आध्यात्मिक संचेतना का केंद्र है।

योग से लाभ

योग से 

चित्त की एकाग्रता बढ़ती है,

बुद्धि में स्थिरता आती है,

चिंतन उत्कृष्ट होता है, 

मन में सद् विचारों का उदय होता है, 

नकारात्मक प्रवृत्तियाँ समाप्त होती हैं,

फलतः 

आत्मिक व शारीरिक शक्तियाँ वृद्धिगत होती हैं;

जो अपूर्व शांति का अनुभव देती हैं।

सत्संकल्प के साथ 

सत्पथ पर बढ़ता मानव

जीवन लक्ष्य को पा लेता है।

योग-सूत्र 

सुदृढ़ मानव जीवन की

आधारशिला है।

योगाभ्यास के श्रम से 

प्रयत्नपूर्वक की हुई साधना

समस्त दु:ख-शोकों का

निवारण कर देती है।

तन और मन को 

सुदृढ़ व परिपक्व बना

व्यक्ति को 

मानव से महामानव बना देती है।

इससे न केवल 

आयुष्य और आरोग्य

प्राप्त किया जाता है,

अपितु मोक्ष की उपलब्धि भी 

सहज संभव है।

दीर्घ जीवन की 

संजीवनी शक्ति के लिए 

योग ही जीवन की पूर्णता

प्रदान करता है।


~मनोज श्रीवास्तव

Comments

Popular posts from this blog

रामकथा

'सीतायाः चरितं महत्'

आत्मा की समृद्धि का पर्व