पावनि गङ्गा
गङ्गा दशहरा पर विशेष
पावनि गङ्गा
समस्त तीर्थों का समन्वितस्वरूप
तीर्थों की मूर्धन्या
सर्वतीर्थमयी।
परमपुनीत त्रिदेव की
साक्षात विग्रहरूप विधि
हरिहरमयी ।
जलमय रूप में द्रवित
ब्रह्मा जी का रूप
ब्रह्मद्रवा।
स्वर्गलोक में मंदाकिनी(आकाशगंगा)
पृथ्वीलोक में भागीरथी
पाताललोक में भोगावती गंगा
बनी त्रिपथगा।
संस्कृति की प्राण,
भक्तों की मान,
ज्ञान का आधार,
चरैवेति सूत्र की निर्देशिका,
लोकमाताओं में प्रथमगण्य,
कर्मनिष्ठों के लिए
स्वावलंबन की सतत प्रेरक,
समस्त पुरुषार्थ व शक्तियों के
सूक्ष्मरूप का अधिष्ठान,
सकल लोकहितार्थ अवतरण,
दर्शन,स्पर्श,पान एवं स्नान से
महापातकियों के भी
पाप का शमन।
गंगे तव दर्शनात् मुक्ति:।
~मनोज श्रीवास्तव
१०/०६/२०२२
Comments
Post a Comment