गुरु परम्परा

 गुरु परम्परा

प्रस्तुति - मनोज श्रीवास्तव

(१)

आत्मसाक्षात्कार 

और ज्ञान की भूमि है

भारत !

ज्ञान की

यही प्रज्ज्वलित अग्नि 

सन्निहित है

भारतीय संस्कृति में ।

ज्ञान के शिखर हैं

गुरु !

गुरु तत्व ही 

मानवीय चेतना की 

क्रान्ति है।

यही गुरुतत्व

भारत भूमि की

समग्र विश्व को

अनुपम देन है ।


(२)

गुरु परंपरा

सत्य का साक्षात्कार 

कर चुकी होती है।

गुरू के भीतर 

साक्षात्कार की शक्ति

शिष्य को

स्थानान्तरित करने की

क्षमता होती है।

गुरु का यह रूप

शिव होता है।

गुरू के भीतर निहित

गुरु परंपरा की शक्ति

गौरी बन जाती है !

जब गुरु शिष्य को

उपदेश या ज्ञान देता है ,

ब्रह्मा का स्वरूप होता है।

इसीलिए 

गुरु और ईश्वर में 

अभेद है।


(३)

यदि ज्ञान रूपी अग्नि

प्रज्ज्वलित हो गयी,

सत्य-दिग्दर्शन हो गया,

विषय वासना 

सम्पर्क में आकर भी

समाप्त हो जाएगी,

ज्ञानी 

निर्लिप्त हो जाएगा,

यही 

मानव चेतना की 

क्रान्ति है।

यही 

गुरुपूर्णिमा का 

संदेश है।

~मनोज श्रीवास्तव

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