स्वतंत्रता का मर्म

 स्वतंत्रता का मर्म


       @मानव

विचारों

व आचरण को 

प्रतिरोध न मिलने की 

कामना को 

पूर्ण स्वतंत्रता मानना

अव्यवहारिक है।


स्व हित के 

अंकुश में 

विचारों 

और आचरण का निर्धारण

मानव में 

दायित्व की भावना 

उपजाता है।


स्व हित से ही 

स्वतंत्रता 

आरंभ होती है ।


संयमित,

शिष्ट,

एवं सद्‌भावपूर्ण 

व्यवहार से

आत्मसंतुष्टि 

प्राप्त होती है।


अपने विचार 

व कर्म की परख 

आत्मिक अनुभूति की 

कसौटी पर कसकर 

मिली आत्म संतुष्टि ही

स्वाधीनता है।

(और संताप पराधीनता)


अंतर्मन की

स्वतंत्रता ही 

बाहर प्रकट होती है।


मन की निर्मलता 

जब तक 

अक्षुण्ण रहेगी

स्वतंत्रता का 

आनन्दपूर्ण उपभोग

करने की योग्यता 

बरकरार रहेगी।


स्वहित के साथ 

सर्वहित का सुयोग 

स्वतंत्रता के

आनंदित उपभोग का 

अवसर बन जाएगा।


~मनोज श्रीवास्तव

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