बीते अमृत महोत्सव का संदेश

बीते अमृत महोत्सव का संदेश

               @मानव

भादों की ठंडी बयार वाली सुबह वही है,हरी चादर ओढ़े धरा वही और बादल के बिखरे छोटे-छोटे टुकड़ों पर नारंगी फोकस डाल कर उसे स्वर्णमय बनाता सूरज भी वही है और इन सुनहरे पैबन्दों से बिखरा पड़ा आसमान भी वही। लेकिन सड़क से लेकर सोसायटी तक,चाय की टपरी से लेकर समोसे जलेबी व ब्रेड मक्खन वाले तक की आँखों में इस बार आज़ादी का रंग कुछ अलग है।यही नहीं पहली बार मस्जिद के सामने वाले मैदान में मौलवी जी द्वारा झण्डारोहण व भारत माता की जय का नारा लगवाता पन्द्रह अगस्त तो मैंने पहली बार देखा।हर चौराहे पर तिरंगे होर्डिंग्स, झंडे व देशभक्ति के गीत से गुंजायमान वातावरण के साथ कालोनी के हर सीढ़ी की गुमटी या रेलिंग से बंधा फ़रफ़राता तिरंगा,सड़क पर दौड़ लगाते ई रिक्शा और टैम्पो की रफ्तार जो अपने ऊपर लगे तिरंगे झण्डे की उड़ान को धीमी ही नहीं पड़ने देना चाह रहे; पन्द्रह अगस्त को इतना उत्साह कब दिखा था मुझे याद नहीं।

एकता संग जाग्रत सामूहिक चेतना की ये शक्ति और चैतन्यता बरकरार रहे। एक नागरिक के तौर पर हम सब जिम्मेदार बनें। सहनाववतु सहनौभुनक्तु का भाव सबमें चरैवेति- चरैवेति का मन्त्र प्रतिष्ठित करे।अमृत महोत्सव का यही संदेश है।


~मनोज श्रीवास्तव

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