विभाजन त्रासदी

 विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर विशेष 

विभाजन त्रासदी

खिलाफत आंदोलन को अकारण व फालतू का  समर्थन भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिक तुष्टिकरण का पहला प्रयोग था जो इतिहास के पडावों से गुजरता अंततः विभाजन की ओर चला गया;इस सत्य को आज याद रखना जरूरी है।


सत्ता हस्तांतरण के फेर में खिलाफत की असफलता की प्रतिक्रिया में हुए 1921 के मोपला साम्प्रदायिक नरसंहार से विभाजन की विभीषिका तक,तत्पश्चात विभाजन के बाद वोट बैंक की राजनीति ने साम्प्रदायिकता के जिन्न का स्थायी समाधान करने का लक्ष्य कभी नहीं बनने दिया।यह भी कटु सत्य है।


अंग्रेजों की बनाई नकली सरहद रेडक्लिफ से विभाजन ने हमारी सीमाओं पर रेखाएं ही नहीं खींची,बल्कि देश के मानस पटल पर भी साम्प्रदायिक विभाजन की एक स्थायी लकीर खींच दी है।फिर आजादी के बाद वोट बैंक की शक्ल में हमने अपने यहाँ साम्प्रदायिक ब्लैकमेलिंग को स्थायी अभयदान दे रखा है संविधान व कानून के जरिए,जो देश व नागरिकों के लिए दुर्भाग्य है।


इन तथ्यों को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर झुठलाना या भुलाना आने वाली पीढ़ियों के प्रति अपराध है।

मनोज श्रीवास्तव

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