गणपति


 गणेशोत्सव पर विशेष

गणपति


    @ मानव

गणपति 

केवल विघ्नहर्ता नहीं, 

सुमति दाता भी हैं। 

जिसके विघ्न हरते हैं, 

उसे सुमति से 

संयुक्त भी करते हैं। 

जहाँ सुमति है, 

वहां विघ्न अनावश्यक हैं। 

गणपति आते हैं 

सुमति साथ आती है।  

भगवती पार्वती 

महाबुद्धि हैं 

तो उनके पुत्र 

बुद्धि प्रदाता होंगे।

इसलिए बाल्मीकि के 

महाबुद्धि पुत्राय हैं।


श्रीगणेश 

प्रत्येक शुभ के 

मूल में हैं। 

वे साकार 

और निराकार 

दोनों मार्ग का 

पथ प्रशस्त करते हैं। 

वे योग से लेकर

तंत्र साधना में अग्रगण्य हैं। 

वे मूर्तिमान भी 

और तत्वतः भी विद्यमान हैं।

इसलिए पंथ चाहे कोई हो, 

पद्धति चाहे कुछ भी हो, 

प्रथम पूज्य तो 

श्री गणेश ही होते हैं।


वे मोदक के वैशिष्ट्य से 

दूर्वा की साधारणता को 

समान भाव से 

प्रियता प्रदान करते हैं, 

तभी तो वे गणनायक हैं,

गण ईश हैं, 

गणपति हैं और

स्वयं गण भी हैं। 

वे सर्व में स्थित होकर 

सर्व नायक बनते हैं, 

चाहे शैव हों या शाक्त, 

वैष्णव हों या सौर्य, 

सगुणोपासक हों 

या निर्गुण उपासक, 

जो सर्व को प्रिय है

वे ही श्रीगणेश हैं । 


यह सर्व स्वीकार्यता ही 

गणनायक होने के मूल में है।

~मनोज श्रीवास्तव

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