दीपोत्सव
दीपोत्सव
@मानव
उत्सवधर्मी भारतीय समाज में
प्रकृति की लय के साथ
अपनी लय मिलाते हुए
जीवन में जो पर्व
सुख-समृद्धि
उत्साह और गति के
उत्सुक स्वागत का अवसर है
वह दीपावली है।
इस उत्सव का आकर्षण है
शक्ति केन्द्र
प्रकाश की ऊर्जा से
स्वयं को पुष्ट
एवं संवर्धित करना।
वस्तुत: यह प्रकृति की
सुषमा का प्रकटन है ।
समय के साथ
होड़ ले रहे पर्व,
हमारी जिजीविषा के
परिचायक हैं
मन, बुद्धि व विचार में
पल रहे अंधेरे का
समाधान हमें करना है।
मानव का भौतिक शरीर
अनंत नहीं होता
इसकी उपयोगिता
और सार्थकता,
समुचित सदुपयोग से है।
दिन-रात के क्रम के साथ
प्रकाश व अंधकार के अनुक्रम से
सन्देश स्पष्ट है
"दिन के प्रकाश से मिलता,
आश्रय और संतोष,
नित्य नहीं रहने वाला
सजगता व सतर्कता से
अंधकार से जूझने के लिए
सतत तत्परता जरूरी है।"
सृष्टि की दीपावली में
विराट प्रकाश का
माध्यम बनना ही
मनुष्य होने की
सार्थकता है;
यही उत्सवधर्मिता की
अनुपम अभिव्यक्ति है
"प्रभु जी तुम दीपक
हम बाती,
जाकी जोत
जरै दिन राती"!
~मनोज श्रीवास्तव
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