कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्

मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष एकादशी

गीता जयन्ती पर विशेष

कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्


      @मानव

जगद्गुरु-कृष्ण-मुख से नि:सरित, 

सर्वकाल, 

सर्व-संस्कृति 

व सर्वपन्थ के निमित्त

प्रदत्त मानस शास्त्र 

जिसका उद्गम 

युद्ध परिदृश्य से हुआ

श्रीमद्भागवत गीता है।


गीता आत्मा का दर्पण है,

इसमें प्रवेश से 

'स्व' के दर्शन होते हैं, 

जिसमें अपने चेहरे के पीछे वाला 

वास्तविक रूप 

स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।


कृष्ण अर्जुन के समक्ष 

सांख्य योग के माध्यम से 

ज्ञान पथ खोलते हैं;

शरीर और आत्मा की 

पृथकता को समझाते हैं; 

आत्मा की अमरता को 

मानने वाले तो असंख्य हैं 

पर जानने वाले मुट्ठी भर!

आत्मा की अमरता जानने से ही

स्व से सर्व में उतरने का 

मार्ग प्रशस्त होता है।


बिना किसी अपेक्षा काम करना 

निष्काम कर्म है

स्वार्थ रहित कर्म में उतरने से ही 

हम कर्म-योग पथिक बनते हैं। 

अहम् ब्रह्मास्मि की स्थापना 

   (सप्तम अध्याय) 

ध्यान से मोक्ष मार्ग का प्रशस्तीकरण

   (अष्टम अध्याय) 

जीवन और जगत के

समस्त आयामों के 

एकत्रीकरण के लिए 

आवश्यक विराट चेतना का परिचय 

श्रीगोविन्द के रूप में कराता है। 


कृष्ण चेतना की लब्धि 

समर्पण भाव से ही संभव है,

आज हम नित्य युद्ध लड़ रहे हैं।

जिसके निमित्त अर्जुन बनकर 

आत्मा में उतारना होगा।

भक्ति योग,

कर्मयोग 

ज्ञान योग, 

सांख्ययोग जैसे रत्न 

गीता के महासागर में 

गोता लगाने वाले को ही मिलेंगे।

गीता वह अमृत है

जिसे आत्मा से पिया जाता है।


  ~मनोज श्रीवास्तव

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