ऊष्मा व उजास का पर्व

 मकर संक्रान्ति पर विशेष

ऊष्मा व उजास का पर्व



      @मानव

जब सूर्य स्वगमन पथ के 

दक्षिणी मार्ग का

परित्याग कर 

उत्तरी मार्ग पर 

चलना आरंभ करते हैं,

धनुराशि का भ्रमण पूर्णकर 

मकरराशि में प्रवेश करते हैं, 

सूर्य का संक्रमण काल ही

मकर संक्रान्ति है।

यह युगादि 

अर्थात युगारंभ का 

प्रथम दिन भी है।


एक दूसरे बिम्ब के अनुसार, 

महाराज सूर्य 

दक्षिण दिशा को जीतकर 

अंधकार व शीत सम 

घोर शत्रुओं का दमन कर 

भारत को प्रस्थान कर रहे हैं;

इस तेजस्वी स्वरूप की 

चहुँओर जयजयकार हो रही है।


संस्कृति,

समाज 

और ज्योतिष सहित, 

विज्ञान और सूर्य से जुड़ा यह पर्व

परिवर्तन के

प्रमुख पड़ाव के रूप में 

प्रतिष्ठित है।


मकर राशि दसवीं राशि है, 

जो मंगल का प्रदाता है। 

मकर में प्रवेश काल से 

सर्वाधिक पुण्य काल 

बत्तीस घटी

    (१२ घण्टे ४८ मिनट)

व्रत, तप, 

यज्ञ, अनुष्ठान, 

जप,हवन,

कथा-श्रवण आदि का 

अनंत पुण्य दायक है।


वैदिक काल से

तमसो मा ज्योतिर्गमय 

ऐसा संदेश है

जहाँ भुवन भास्कर 

चराचर जगत की 

आत्मा-रूप में स्वीकार्य हैं,

जबकि चन्द्रमा मन 

और पृथ्वी देह है। 

तीनों के विशिष्ट संयोग से ही 

सृष्टि संचरित हो रही है। 


प्रकाश की वृद्धि 

सर्वथा शुभ होती है;

जैसे सूर्य प्रकाशमान है,

तेज से भरा हुआ है,

वैसे ही तेज की कामना 

अथर्ववेद में की गई है।


सूर्य के उत्तरायण होनेपर

ऊष्मा एवं उजास में वृद्धि 

जब मनुष्य में सद्विचार, 

विद्या,

विवेक, 

वैराग्य, 

ज्ञान आदि का चिंतन

प्रवृत्त करता है,

वही उत्तरायण की स्थिति है।


सूर्य सदृश

शनै:-शनै: तिल-तिल कर

आगे बढ़ने का संदेश

मानव के लिए

इस पर्व का लक्ष्य है।

हमें भी अपने 

अंतरात्मा रूपी सूर्य में 

तमस, विकार और विषयों को 

दूर करके 

जीवन को प्रकाश से 

भर देना चाहिए।


 ~मनोज श्रीवास्तव

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