स्व का तंत्र

 गणतंत्र दिवस हेतु विशेष

"स्व" का तंत्र



      @मानव

धर्म 

जीवन का विधान है

तो अध्यात्म 

जीवन का संविधान है।


धर्म वह सोपान है

जो हमें अध्यात्म तक

पहुँचने का मार्ग

प्रशस्त करता है। 

धर्म प्रकृति का वह नियम है

जो समस्त विश्व को 

संचालित करता है।


वस्तुत: धर्म ही 

संपूर्ण जगत का आधार है।

                (वेदव्यास


धर्म के दस लक्षण

                (मनुस्मृति)

आंतरिक और वाह्य जीवन 

व्यवस्थित रखते हैं

जिनसे हमारे स्व का तंत्र 

विकसित व पुष्पित होता है।


श्रीकृष्ण की घोषणानुसार 

उनका विराट स्वरूप ही

प्रकृति है,

जो सत् रज एवं तम

तीन गुण युक्त है।


अपने स्वभावानुकूल 

कर्म करना धर्म है।

       (श्रीकृष्ण


मूल धर्म को भूलना

स्वयं की पहचान खोना है। 

मन पर नियंत्रण से 

कर्म निर्वाह के प्रति

द्वंद शमन हो जाता है।


 ~मनोज श्रीवास्तव

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