सा वाग्देवी तु सरस्वती
बसन्त पञ्चमी पर विशेष
(१)
सा वाग्देवी तु सरस्वती
@मानव
परम चेतना,
ज्ञान की अधिष्ठात्री,
बुद्धि, प्रज्ञा
तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका
ईश्वरीय शक्ति
वाग्देवी
भगवती सरस्वती का
आविर्भाव दिवस
जिनके अनुग्रहों के लिए
कृतज्ञता भरा अभिनंदन
विद्या जयंती
बसन्त पञ्चमी है।
माँ के हाथ में शोभित पुस्तक
व्यक्ति की भौतिक आध्यात्मिक
एवं भौतिक प्रगति हेतु
स्वाध्याय की अनिवार्यता का
प्रेरक है,
स्व ज्ञान वृद्धि का प्रेरक है।
इस दिशा में बढ़ने का साहस
स्वाध्याय को
दैनिक जीवन का अंग बनाने
व ज्ञान की गरिमा को
समझाने के लिए है ।
देवी के कर कमलों की वीणा
वाद्य से प्रेरणा देती है
कि हमारी हृदय रूपी वीणा
सदैव झंकृत रहे,
हम संगीत व कला प्रेमी बनें,
कला पारखी बनें,
कला-संरक्षक बनें ।
भगवती का वाहन मयूर
मधुर भाषी है,
जो प्रकृति द्वारा
कलात्मक सुसज्जित है
अभिरुचि परिष्कृत बनाने की
प्रेरणा देता है।
सर्वत्र विद्या अभिवृद्धि से
माँ प्रसन्न होती है
जो पशुता से मनुष्यता
अज्ञानता से ज्ञान
अविवेक से विवेक की ओर
बढ़ने का संकल्प है।
(२)
बसन्त
@मानव
बसंत आगमन
मधुरता,उल्लास
तथा दिव्य स्फूर्ति का
समावेश कर,
चिंतन, मनन
व दिव्य प्रेरणा के माध्यम से
सम्पूर्ण मानवता को
आनन्द से परिपूर्ण करता है
प्रकृति को नींद से जगाता है,
उसे सक्रिय बनाता है
फलतःधरा पर चहुँ ओर
सौन्दर्य का संचार होता है।
हेमंत व शिशिर में
वृद्धा समान कान्तिहीन हो चुकी
सावन की पनपी हरियाली वाला
सौंदर्य पुनः लौटाता है।
मनुष्य के मानस पटल पर
हावी जड़ता,
स्थिरता
और तामसिकता को
विस्थापित कर
अंतःकरण में
सात्विक प्रवृत्तियों को
सृजित करके
उसकी आत्मिक उन्नति के मार्ग को
पुन: प्रशस्त करता है।
बसंत के सुरम्य वातावरण में
सरस्वती वंदन
मनुष्य को विवेक शक्ति से
सुसज्जित करता है।
ज्ञानार्जन की प्रेरणा देता है।
मधुमास द्वारा
प्रकृति को नई ऊर्जा से
ओत प्रोत करना
हमारी चेतना में समाई
तामसिक वृत्तियों को दूर करके
दिव्य वृत्तियों से
युक्त करता है।
~मनोज श्रीवास्तव
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