शुचिता संवर्धन पर्व
माघी पूर्णिमा पर विशेष
शुचिता संवर्धन पर्व
@मानव
मघा नक्षत्र के नामपर
उत्पत्ति वाले माघ मास की
पूर्णिमा तिथि से
फाल्गुन का प्रारंभ होता है।
कठिन व्रतदान
और तपस्या से
अर्जित होने वाला
पुण्य लाभ
माघ मास के
स्नान मात्र से ही
प्राप्त हो जाता है।
{उत्तर खंड (पद्मपुराण)}
प्रत्येक नदी का जल
माघ मास के दौरान
गंगा जल तुल्य
पवित्र व दिव्य हो जाता है।
माघी पूर्णिमा के दिन
सकल भगवदीय सत्ता
और स्वयं नारायण
पृथ्वी लोक की
जल राशियों में
विशेषकर गंगाजल में
अधिवास करते हैं।
"माघ पूर्णिमा के दिन
स्वयं भगवान विष्णु
गंगाजी में निवास करते हैं।"
(ब्रह्मवैवर्त पुराण)
आदि पुरुष
भगवान नारायण का
अस्तित्व भी नीर से ही है ।
उनकी सहचरी
जगन्माता लक्ष्मी
नीरजा नाम ख्यात है।
अत: गंगाजी में स्नान व ध्यान
और गंगा जल के स्पर्श मात्र से
आत्मिक आनंद
और आध्यात्मिक सुख की
प्राप्ति होती है।
माघ कल्पवास के दौरान
पधारे कल्पवासी
एवं देवी-देवता
इस दिन अंतिम स्नान कर
निज धाम गमन करते हैं।
भारत की नदियाँ
मात्र जल स्रोत ही नही,
अपितु हमारे
सांस्कृतिक संवेगों की
प्रवाहिकाएं है,
करोड़ों श्रद्धालु
बिना किसी भेदभाव के
पावन स्नान करते हैं।
पूर्णिमा का पर्व
धर्म व पुण्यार्जन हेतु तो है ही
नदियों की शुचिता,
सातत्य और संवर्धन का भी
संदेश देता है।
नदियों में मात्र एक डुबकी
और एक आचमन
आत्म मंथन की डुबकी लगाने
और अपने जीवन को
अमृत कलश से भरने का
संकल्प संपूर्ति वाला,
व शुचिता संवर्धन का
सुदीर्घ संदेश देता है।
~मनोज श्रीवास्तव
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