अर्चन ननु स्वराज्यम्

 स्वामी दयानन्द सरस्वती के

२०० वें जन्मदिवस पर विशेष

अर्चन ननु स्वराज्यम्



      @मानव

(१)

अपने वैदुष्य, 

तार्किकता, 

निर्भीकता, 

वक्तृत्व- कौशल, 

सांगठनिकता, 

ऊर्जा 

और वैविध्य से 

अद्यतन चमत्कृत करने वाली 

प्रतिभा के धनी,

भारतीय सांस्कृतिक वैभव के 

प्रबल पक्षधर 

और वैदिक परंपरा की 

वैज्ञानिकता के प्रतिपादक;

आत्मावलंबन, 

आत्मगौरव, 

आत्मनिर्भरता 

और आत्माभिमान का 

पाठ पढ़ाने वाले;

देश के पतन मार्ग पर 

प्रवृत्त होने के कारणों   

आलस्य, 

प्रमाद, 

द्वेष, 

विषयासक्ति, 

पुरुषार्थहीनता 

तथा विद्या- पराङ्मुखता की

विशद समीक्षा करके

उन्हें चिह्नित करने वाले;

भारतीय सन्त परम्परा के विराट वृक्ष;

जिन्होंने

वेदों की प्रामाणिकता  प्रतिपादित की;

आर्य-समाज 

सामाजिक सांस्कृतिक संस्था

स्थापित की;

ऊँच-नीच, 

छुआछूत के विरुद्ध 

घोष किया;

अछूतोद्धार का आंदोलन चलाया;

मूर्तिपूजा में व्याप्त हो गए 

आडंबर का विरोध किया; 

पाखंड का सार्वजनिक खंडन किया;

राष्ट्रीय गौरव का बोध कराया;

राष्ट्रीय एकता के प्रयत्न किए;

स्वदेशी का विचार प्रणयन किया;

जन-जन को स्वराज्य के लिए 

प्रेरित करने का प्रयास किया;

तार्किक शास्त्रार्थ किए; 

विशद वैचारिक लेखन किया;

आर्य संस्कृति का उद्घोष किया;

संस्कृत भाषा को 

आर्यावर्त में फैलाने का 

उद्यम किया;

समग्र भारतीय पुरुषार्थं का 

आह्वान किया;

निर्भीक सामर्थ्यशाली 

भारतीयता का बोध कराया;

पराधीनता की तीव्र भर्त्सना की;

विदेशी सत्ता से मुक्ति की 

राह दिखाई;

कुरीतियों को दूर करने का 

युद्धवत प्रयास किया;

ज्ञान-विज्ञान के विकास की 

आवश्यकता को रेखांकित किया;

अंधविश्वास का निषेध किया;

शिक्षा की ज्योति को 

व्यापक विस्तार दिया; 

भारतीय सांस्कृतिक मनीषा के 

समर्थतम संवाहकों में 

श्रेष्ठतम 

महर्षि दयानन्द  जी को

शत शत नमन!


(२)

स्वराज्य के 

सर्वप्रथम संदेशवाहक, 

आराधक

व उद्घोषक 

जिन्होंने स्वाधीनता को

राष्ट्र विकास का 

मूल साधन स्वीकारा ; 

स्वचिंतन 

और वैचारिक क्रांति से

राष्ट्रीयता की 

प्रचण्ड ज्वाला का

श्रीगणेश किया;

स्वतंत्रता आन्दोलन की 

पृष्ठभूमि तैयार करके 

जिन्होंने वेदों के माध्यम से 

विश्व कल्याण की 

आकांक्षा जागृत की;

ऐसे सत्य-उद्‌घोषक 

स्वामी दयानन्द सरस्वती की 

दर्शन-दृष्टि

आज भी प्रासंगिक है।


वेद मंत्रो से 

नवचेतना-विस्तार का निरूपण

उनकी देन है।

"अर्चन ननु स्वराज्यम्" से 

वे स्वराज्य आराधना के  

प्रणेता हैं;

"माता भूमि: 

पुत्रो अहम् पृथिव्या:" से 

राष्ट्र से माता-पुत्र-संबंध के 

प्रतिपादक हैं;

"वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम्"से

मातृभूमि पर 

सदा बलिदान-भावना का 

रोपण करते हैं;

"राष्ट्रदा राष्ट्र मे देहि"से 

परमपिता परमात्मा से 

राष्ट्र-स्वाभिमान की 

भावना-ओतप्रोत करने की 

कामना करते हैं।


युवा वर्ग में उत्कृष्ट नैतिक

तथा आध्यात्मिक मूल्यों के सूत्रपात 

तथा आध्यात्मिक जागरण से 

जनकल्याण मार्ग

प्रशास्तीकरण हो, 

"तुम सब ईश्वर की संतान हो"

कह कर आत्मिक बल 

तथा आध्यात्मिक बल का संचरण 

उनका अप्रतिम प्रयास है।


संयम,साधना 

और तप मार्ग पर चलकर 

शारीरिक शक्ति 

तथा आत्मिक शक्तियों को 

परिष्कृत करने का 

उनका प्रयास स्तुत्य है

जो धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष की 

अनुभाति का 

अनादि काल से 

चला आ रहा 

एकमेव मार्ग है।


जाति,संप्रदाय,पंथ की 

आपसी ईर्ष्या,द्वेष,कलह 

समाप्त करके

राष्ट्रनिर्माण हेतु प्रेरित करना 

उनका नव चेतना  का

विस्तारक रूप है। 


अंधविश्वास और पाखंड के 

निर्भीकतापूर्वक खंडन, 

समाज सुधार, 

विद्या प्रसार, 

धर्म प्रचार, 

राष्ट्रीयता भावना का संचार 

तथा स्वदेशी को प्रोत्साहन में 

संलग्न व्यापक जनांदोलन के

अप्रतिम प्रणेता,

सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध 

जिनका जीवनपर्यंत संघर्ष 

सुधारकरूप की बानगी है,

ऐसे राष्ट्रनायक

पीढ़ियों के प्रेरक हैं।


~मनोज श्रीवास्तव

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