यतो शिवः ततो आनन्द:
यतो शिवः ततो आनन्द:
@मानव
चन्द्रमास का एकादश माह फाल्गुन
पाँच ज्ञानेन्द्रिय
पाँच कर्मेन्द्रिय
एवं एक मन का सूचक है।
ग्यारह इन्द्रियों के साथ
तीन लोकों का जुड़ाव से
चतुर्दशी तिथि
अति महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
बसंत का संक्रमण काल फाल्गुन
प्रकति की मोहकता आने से पूर्व ही,
प्रकृतिस्वरूपा माता पार्वती का
सायुज्य कराता है
ताकि शीश पर जल
और वायुमण्डल में
अपने डमरू से
नाद-सृष्टि का रोपण करने वाले
देवाधिदेव महादेव
प्रकृति की पर्याय
माता पावती के साथ मिलकर
लोक कल्याण का
परिवार स्थापित कर सकें।
विवाहोपरान्त जन्मे
महादेव पुत्र
व देव सेनापति कार्तिकेय
प्रकृति में विद्यमान
विषाणु रूपी दैत्यों का वध
अपने वाहन मोर के
माध्यम से करते हैं।
पशु मानव के संयुक्तस्वरूप
गणेश के माध्यम से
पशुता से मानवता की ओर
चलने का संदेश
महादेव देते हैं।
गजानन को प्रदत्त
बुद्धि-विवेक का दायित्व
सिद्ध करता है
बौद्धिक कार्य मे संलग्न होने पर
रूप-रंग तथा सौदर्य का विषय
गौण हो जाता है।
गणेश के भोज्य कैथ व जम्बू
स्थापित करते हैं
बुद्धि-विवेक के साथ
कसैली तथा मीठी परिस्थितियों में
भाव समान होना चाहिए
तभी आह्लाद का मोदक
अवश्य प्राप्त होता है।
माँ पार्वती का वाहन सिंह
अपने आहार की व्यवस्था
स्वयं करता है
पर बचे आहार का संग्रह
कदापि नहीं करता
क्योंकि लोभ की वृत्ति
संग्रह से उपजती है।
ऐसे ही सुखद मुहूर्त का
आविर्भाव करने वाली
फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी पर
आने वाला महाशिवरात्रि पर्व
दर्शाता है कि
जहाँ शिव पार्वती हैं
वहीं आनन्द का सागर है।
~मनोज श्रीवास्तव
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