प्रकृति देवी
नवरात्रि पर विशेष
प्रकृति देवी
@मानव
प्रकृति एक अखण्ड इकाई है,
प्रकृति सदा से है,
सदा रहती है।
प्रकृति की शक्ति विराट है,
यह दिव्य है सो देवता है ।
जहाँ जहाँ दिव्यता,
वहाँ वहाँ देवता ।
जल सृष्टि का आदितत्व है,
ऋग्वेद में भी
जल को माँ देखा गया है,
जल माताएं
आप: मातरम् हैं
और देवियाँ हैं ।
ऋग्वैदिक ऋषियों की अनुभूति में
संसार के प्रत्येक तत्व को
जन्म देने वाली
यही जल माताएं हैं।
प्रकृति को माँ देखते ही
हमारी जीवन दृष्टि बदल जाती है।
प्रकृति अनन्त है,
असीम और आख्येय है,
इसे माँ कहने में आह्लाद है।
भारत का मन भाव प्रवण है,
भाव प्रवण चित्र में ही
शिव संकल्प उपजते हैं ।
भाव प्रवण हो तो
पत्थर में भी प्राण देख लेते हैं।
अनगिनत जीव
प्रकृति गर्भ से आ चुके हैं,
प्रतिपल आ रहे हैं।
सतत्,
अविरल,
पुनर्नवा
प्राणि,
वनस्पति,
लोभ-मुक्त शिशु।
जीवन अद्वितीय है
माँ का प्रसाद है,
प्रकृति सृजनरत है;
प्रकृति दसों दिशाओं से
अनुग्रह की वर्षा करती है;
अनुग्रह के प्रति
अनुग्रहीत भाव स्वाभाविक है।
प्रकृति माता का ऋण है हम पर,
प्रकृति का पोषण व संवर्धन
माँ की ही सेवा है।
प्रकृति के सभी रूपों में
माँ की देखने की अनुभूति
भारतीय दृष्टिबोध है।
पृथ्वी भी माँ है
इस पर रहना,
कर्मरत रहना,
कर्म फल पाना,
अंतत: इसी की गोद में
विश्राम पाना
जीवन सत्य है।
माता पृथ्वी धारक है,
पर्वतों को धारण करती है,
मेघों को प्रेरित करती है;
वर्षा जल से,
अपने अंतस-ओज से
वनस्पतियाँ धारण करती है
पृथ्वी को माँ जानने की
अनुभूति गहन है,
देवरूप माँ की उपासना
शक्ति प्राप्ति का
दिव्य अनुष्ठान है।
~मनोज श्रीवास्तव
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